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Showing posts from February, 2011

लौट कर मन की हवेली में जाना

हर शाम उसका यूं चले आना

कुछ ख़त जेब से गिर जाते हैं

पलकन की चिक डाल के साजन लेऊं बुलाय

बस यही माल मुसाफिर का है...

ऊपरी माले में टंगी झोली में अर्ज़ियाँ नहीं, कुछ अनगढ़ ख़्वाब रखे हैं