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Showing posts from March, 2012

इस बात का एतबार नहीं है...

तुम लौटा नहीं सकते

तुम भी देखना उचक कर...

है कुछ ऐसी ही बात...

मुझे आदत है, घरों में झांकते हुए चलने की

उदास किराडू और थार फेस्टिवल

खोये हुए सफ़र का एक लम्हा

आ कि तेरी जेब में रखूं...