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Showing posts from 2017

ऊधो, मन माने की बात

भीगे सलवटों भरे बिस्तर

चाहना की प्रतिध्वनि

जो तुम नहीं हो

क्या सचमुच !

नष्ट होती चीज़ों के प्रति

फूल को चूमकर उड़ जाना

अचम्भे की बरत की तरह

प्रेम करने के ख़याल की ख़ब्त

यादों की सुरंगें

असल में कुछ नहीं हूँ मैं

ख़यालों के अंडरपास

बस एक बार के लिए

हम फिर मिलते हैं

कि कहां तक

बहुत दिनों बाद अनायास

क्या होगा सोचकर

याद करते हुए एक बरस

जोगी ही बन जाएँ मगर

उसकी आमद का ख़याल

तुम्हारे लिए हमेशा

प्रिय को बदलते हुए देखकर

इतवार का स्वाद

दफ़्तर के चूहे, बिल्ली और सांप

दूर से आते हुए पिता

बिछड़ने के बाद के नोट्स

आस्ताने में दुबकी छाँव

चश्मे के पीछे छुपी उसकी आँखें

तुमसे कभी नहीं मिलना चाहिए था

किमाम लगी सिगरेट

प्रेम के आगे चेक का निशान

जाने किसलिए