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Showing posts from June, 2017

चुड़ैल तू ही सहारा है

रेगिस्तान में चुड़ैलों के कहर का मौसम है. वे चुपके से आती हैं. औरतों की चोटी काट देती हैं. इसके बाद पेट या हाथ पर त्रिशूल जैसा ज़ख्म बनाती हैं और गायब हो जाती हैं. सिलसिला कुछ महीने भर पहले आरम्भ हुआ है. बीकानेर के नोखा के पास एक गाँव में चोटी काटने की घटना हुई. राष्ट्रीय स्तर के एक टीवी चैनल ने इस घटना को कवर किया. पीड़ित और परिवार वालों के इंटरव्यू रिकॉर्ड किये. कटी हुई चोटी दिखाई. बदन पर बनाया गया निशान दिखाया. गाँव के बाशिंदों की प्रतिक्रिया दर्ज की. पुलिस वालों के मत लिए. इसके बाद इसे एक कोरा अंध विश्वास कहा. घटना के असत्य होने का लेबल लगाया. टीवी पर आधा घंटे का मनोरंजन करने के बाद इस तरह सोशल मिडिया के जरिये फैल रही अफवाह को ध्वस्त कर दिया. इसके बाद इस तरह की घटनाओं का सिलसिला चल पड़ा. बीकानेर के बाद जोधपुर जिले की कुछ तहसीलों में घटनाएँ हुईं. जोधपुर से ये सिलसिला बाड़मेर तक आ पहुंचा. सभी जगहों पर एक साथ पांच-सात स्त्रियों के साथ ऐसी घटनाएँ हुईं. उनकी कटी हुई चोटी का साइज़ और काटने का तरीका एक सा सामने आया. शरीर पर बनने वाले निशानों की साइज़ अलग थी मगर पैटर्न एक ही था. ब

अपने जानने से परे

बारिश के इंतज़ार में कभी बारिश आ जाती है। हम बीज बोने के बाद नन्हे पौधे की प्रतीक्षा करते हैं। एक दिन वहीं टहनियां बन जाती हैं। हम सोचते हैं फूल खिल आएं। किसी सुबह कोई फूल खिला होता है। कभी हम सोचते हैं कि ज़िन्दगी गुज़र जाए तो अच्छा। एक रोज़ पाते हैं कि ज़िन्दगी गुज़र चुकी है। हम सचमुच जानते हैं कि क्या होना है। हम बस अपने जानने को मानना नहीं चाहते। जीवन की दिव्य दृष्टि के समक्ष हमारा ज्ञान सबसे बड़ी बाधा है।

वजह कुछ भी हो सकती थी

अच्छा क्या परेशां होते हो? नहीं क्यों? इसलिए कि इतनी दूर से जब तुम अपना मन कहते हो. तब मुझे समझ आता है कि ये अभी की ज़रूरत है. इस वक़्त मुझे होना चाहिए. मैं चुपचाप लगातार सुनूँ. क्यों? कि ये लम्हा इसी लम्हे के लिए है. बाद में नहीं रहेगा. अच्छा जो कुछ सुना कहा जाता है उससे बाद में रिग्रेट नहीं होता? कभी कभी होता है कि आदमी औरत का मन ऐसा क्यूँ बनाया है. चाहनाएँ वन लताओं की तरह उलझी-उलझी क्यों उगती हैं. इसलिए कि तुम सुलझाओ. कबूतर के पंखों की आवाज़ आई. कबूतर जानबूझकर अपने पंखों को आपस में टकराकर बजाता है. इसलिए कि उसे लगता है कुछ गलत होने वाला है. लड़के ने सोचा क्या गलत होगा. अब तक कितनी ही लड़कियां और अधेड़ होने को भागी जाती औरतों को वह जानता है. एक-एक के कितने कितने सम्मोहन. कितने-कितने रिश्ते. वे मानती नहीं थी. मगर उसने ख़ुद देखा है. वे संदेशे भेजकर छेड़ में लगी रहती थी. एक रोज़ लड़की ने कहा- “ये ट्राय एंड एरर मेथड है. चाबी को हर ताले में ट्राय करो. जो खुल जाये सो अच्छा. इसी तरह तुम मेरे आस आये थे न?” वह भौंचक था. इसलिए नहीं कि ये बात सच थी. उसके प

भाग जाने के मौसम की याद

औरत ने एक लम्बा कोट पहना हुआ था. गरदन को मफलर से ढका हुआ था. हाथ कोट की आगे वाली जेबों में थे. आदमी एक फॉर्मल कोट में था. उसके सफ़ेद शर्ट पर गहरी नीली टाई बाँध रखी थी. टाई का जरा सा ऊपरी हिस्सा और गांठ दिख रही थी. उन्होंने हाथ मिलाये. दोनों के हाथ एक से गर्म थे लेकिन सख्ती की तासीर अलग थी.  “कभी सोचा न था इस तरह?” आदमी के चेहरे पर मुस्कान थी.  औरत की आँखों में हलकी चमक थी- “मुझे मालूम था कि हम किसी शहर में फिर से एक साथ होंगे.”  टेबल का टॉप गहरे भूरे रंग का था. उस पर एक गुलदान रखा था. उसमें दो टहनियों के सिरे पर लगे दो फूल रखे थे. आदमी ने उसे अपने दायें हाथ से किनारे कर दिया. उसे ऐसा करते हुए औरत ने देखा. और आदमी ने जब औरत को देखते हुए देखा तो पूछा- “क्या..”  “क्या करते हो? “कुछ नहीं करता.” औरत की आँखों में जो मुस्कान थी. वह अब उसके होठों पर आ गयी- “कुछ नहीं करने के लिए दिन भर क्या करना पड़ता है?” “सीरियसली... कुछ नहीं. आज सुबह इसी ख़याल में जागा था कि हमको मिलना है. फिर पता है मैं दो घंटे तक कुर्सी पर बुद्ध हुआ बैठा रहा.” इतना कहकर आदमी फिर बुद्ध होने की त

कोई ज़रूरी है कि सबकुछ कहूँ?

कोई दीवार ही होते तो कितना अच्छा होता मौसमों के सितम सहते और चुप रहते. इक दिन बिखर जाते, बिना किसी से कोई शिकवा किये हुए. *** "आपके आसपास अदृश्य आवरण है. मुझे नहीं पता कि इसे कैसे कहूँ. इस औरा के भीतर आने का रास्ता नहीं मिलता. या कई बार मन चाह कर भी भीतर आने से मुकर जाता है. दूर बैठकर देखता रहता है. मुझे आपसे बहुत कुछ कहना है. मेरी चाहना है कि आप सुनें. आप मेरे पास बैठे रहें. नहीं, मैं आपके पास रहूँ. आप कितने बंद-बंद से हैं. आपकी ओर से कभी ऐसा फील नहीं आता कि लगे आपने मेरे बारे में सोचा. आपने चाहा हो कि मैं कुछ कहूँ. आपने कभी आगे होकर कोई बात नहीं की. कई बार मैंने इंतज़ार किया. थकान हुई और फिर बंद कर दिया. मुझे लगता है कि मिल लेना, पास बैठ लेना. बात कर लेना जैसी छोटी-छोटी बातें भी कितनी दुश्वार हैं. बाकी ज़िन्दगी का तो क्या कहूँ. कितनी थकान होती है. कभी डिप्रेशन आने लगता है और भी जाने क्या- क्या? जाने दीजिये आप नहीं समझेंगे." एक चुप्पी आ बैठी. वह देर तक बैठी रहती इससे पहले मैंने तोड़ दिया. "ऐसा थोड़े ही होता है कि जो जैसा दिखे वैसा ही हो. कई बार हो

वह उसी औरत में ढल गया

उसकी अंगुली को पहली बार छुआ था तब शाम होने को थी. शायद हो चुकी होगी. एक जरा आधे हाथ का फासला था. इससे कुछ देर पहले एक रेस्तरां में बैठे थे. बीयर की छोटी बोतल के पास से कोई नन्हीं बूँद फिसलती और टेबल तक पहुँच जाती. आदमी की जामातलाशी ली जाती तो उसके पास से ऐसी कोई चीज़ बरामद नहीं होती जिससे उसके अतीत का पता चलता. अक्सर वह जहाँ से उठता सबकुछ पीछे छोड़ आता था. जैसे कि थोड़ी देर बाद वे दोनों बीयर की खाली बोतलों और खाने की प्लेट्स को छोड़कर उठते. बाहर आने के बरसों बाद भी उस औरत को याद रहता कि वह बीयर पी रही है. उसने आदमी के सामने बैठे अपनी प्लेट में खाया है. कोई एक चीज़ थी जो दोनों ने आखिर में बांटकर खायी. मगर वह आदमी उस बीयर का, खाने का, उस लम्हे का शुक्रिया कहता. अगले पल सोचता कि अब कहाँ जायेगा? वह कहीं भी जा सकता था. अक्सर वह ऐसे ही गया जब भी गया. जिस तरह बीयर खत्म हो गयी थी. जिस तरह खाना पूरा हो गया था. उसी तरह अगर औरत का इस साथ से मन पूरा हो गया होता तो? आदमी हाथ मिलाता. वह पास आती तो उसे गले लगाता और फिर किसी सराय की तलाश में चल देता. बिना ये सोचे कि इससे आगे वह कहाँ जायेगा. मोहोब्बत कुछ