माना के तुम साथ नहीं हो मेरे दिल के पास नहीं हो, मैंने ये माना फिर भी आस लगी है दिल में बादलों से भरी सुबह थी। मैं पुराने बस स्टैंड के कियोस्क के सिलसिले की एक दुकान के आगे बैठा हुआ था। अचानक गीत के ये बोल सुनाई दिए। मैंने अपनी नज़र मोबाइल से हटाई। झीने कपड़े का पजामा और कमीज पहने एक बुजुर्ग उलटे खड़े थे। उनके हाथ में मोबाइल था और ये गीत प्ले हो रहा था। मैं मुस्कुराया। कवर वर्जन प्ले हो रहा था। ये बहुत छोटा सा पीस है। अभी दो मिनट में खत्म हो जाएगा। मैंने इसे मोबाइल पर सर्च किया। उल्फत से कहा "भाई सुबह-सुबह बाबा ने दिन भर का काम दे दिया है। अब इसे ही सुना जाएगा" पास में चाय की थड़ी पर डूंगर जी किचन ऐप्रिन पहने चाय उबाल रहे थे। चाय की खुशबू भीगे मौसम में ठहर कर आगे बढ़ रही थी। हेमू अपने काम में खोए थे। रवि दूकान जमाने में लगा था मगर मैं नब्बे के दशक तक लौट चुका था। शाहिद कपूर एक कमसिन लड़के की तरह याद आए। एक झबरैला पिल्ला याद आया। एक बेखबर लड़की याद आई। जिसे मालूम न था कि एक लड़का अपनी गुल्लक तोड़ कर उधारी करके भी उसे सबसे सुंदर कपड़े भेंट करना चाहता है। डीजे नारायण थे न।...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]