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Showing posts from October, 2022

न हथाई, न राम राम

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"पूअर कनेक्शन बहुत गड़बड़ करते हैं।" मां ने कहा "कनेक्शन तो सई होणा ई चाइजे"  "बस-कार में उल्टी होने का कारण सही कनेक्शन नहीं होना ही है।"  मां ने अचरज से कहा "हवे!"  मैंने उनको पढ़ी-सुनी जानकारी दी। "हमारी आंख जो देखती है, कान जो सुनते हैं, पेट जो निर्जलीकरण से बचना चाहता है। वे अपने संदेश दिमाग तक भेजते हैं। खराब कनेक्शन के कारण सूचनाएं गड़बड़ी पैदा करती है। और उल्टी पर उल्टी"  मां ने कहा "रेल सही। रेल में टिकट कर दे" मां का टिकट कुछ दिन बाद का रिजर्व हो पाया। जयपुर पहुंचकर सुबह कार से घर आते समय मां सामान्य रही।  उनको डर तो था मगर खुली हवा थी। सड़कें खाली होने के कारण तेज़ गति से सामने से आने वाली या पीछे से आगे निकलने वाली गाड़ियां नहीं थी। एक दिशा में चलने का आभास था। इसलिए भीड़ में होने वाला दिग्भ्रम नहीं बना। हम आराम से घर आ गए। मां को उल्टी नहीं आई। मोशन सिकनेस से पीड़ित व्यक्ति जब कार, बस आदि से उतरता है तो उसे जो राहत मिलती है, उसका बयान नहीं किया जा सकता।  मां को थोड़ा डर लिफ्ट का भी था लेकिन सात माले में समय नहीं ल

कौनसे अमीश

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मिथक एक समझदार व्यक्ति हैं, इतिहास बचपना है। प्रसिद्ध लेखक अमीश से एक बातचीत को इंडियन एक्सप्रेस ने छापा है। आज के अख़बार का एक पन्ना आइडिया एक्सचेंज के तहत इसी बातचीत का है।  एक बहुत बिकने और पढ़े जाने वाले लेखक का साक्षात्कार जिसे 'न्यूज़ मेकर इन न्यूज़' रूम कहकर प्रकाशित किया है, एक ज़रूरी बात है। इसे पढ़ा जाना चाहिए ताकि आप समझ सकें कि लेखक एक प्रवक्ता नहीं होता है। लेखक जो सोचता और महसूस करता है, वह उसके रचनाकर्म से बहुत अलग भी हो सकता है।  शिवा ट्रायोलॉजी से बात आरंभ करते हुए पूछा गया कि चुनौतियां क्या रही?  इसके जवाब में अमीश ने कहा कि लेखक को अपने लेखन में विचार और दर्शन का समावेश करना चाहिए। भले ही पाठक आपसे सहमत हो या नहीं। मैं उनकी इस बात से सहमत होता हूं। ये इस समय का सत्य है कि विचार और दर्शन से अछूता लेखन हमारे आस-पास पसरा हुआ है। वास्तविकता ये है कि वही बिक भी रहा है। एक प्रश्न के जवाब में कहते हैं कि अकीरा कुरुसोवा की राशोमोन। ये पढ़कर मैं सोचता हूं कि वे आगे कहेंगे रियोनुसुके अकुतागावा लेकिन एक लेखक दूसरे लेखक का नाम नहीं लेता। वह केवल फ़िल्मकार को