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Showing posts from April, 2023

लुटेरा

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प्रेम एक दारुण प्रतीक्षा है।  समय ने उसके चेहरे की कोमलता पर सुघड़ता के तार कस दिए थे। किशोरवय में हल्के झूलते गालों के स्पंदन को यौवन के संपूर्ण तनाव ने विस्थापित कर दिया था। ललाट पर चोट के तीन हल्के निशान थे। थोड़ा जूम करके देखने पर ललाट चांद की कोई तस्वीर सा दिख सकता था। स्कूल की किताब में दिखने वाला वो चांद जो आकाश के चांद से अलग था। जिसमें असमतल ज़मीन पर बेतरतीब छोटे गड्ढे थे।  नायिका का अकेलापन क्षितिज की रेख की तरह फैला हुआ था। हवेली में सजी मूल्यवान धातुओं की चमक की तरह कौंधते हुए एकांत सा अकेलापन। सेवकों, मुंशियों, मनोरंजन करने वालों के बीच सजीव खड़ा हुआ। क्या इसी ठहरी और बोझिल ऊब से दिल किसी कांटे पर गिर पड़ता है।  नायक ने न कांटा फेंका। न उस पर चारा लगाया। उसके साथ इतना हुआ कि वह किसी और प्रयोजन से तालाब में पांव डालकर बैठा था कि एक मछली गुदगुदी कर गई। उस चौंक में पहली बार पानी में तैरते मचलते रंग दिखें। उन रंगों को अपनी अंजुरी में छिपा लेने का मन हो गया। ये नहीं सोचा कि पानी से हाथ बाहर निकालते ही पानी बह जाएगा। मछली तड़प कर मर जाएगी।  नायिका के अधखुले होंठ रूमान की गहरी तस

मेलडीज़ ऑफ अ व्हेल

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मृत्यु के बारे में बात करना मना है।  ये अशुभ है। अशुभ कहना बात को टालना है। मृत्यु के बारे में संवाद असहज करते हैं। मानसिक विचलन लाते हैं। हम बात कर सकते हैं किंतु कठिनाई ये है कि इसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता। इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं है, इसके सब अनुमान गलत हैं।  जिस तरह दिन के उलट रात अधिक सम्मोहक, जादुई, भयावह, गोपनीय और रूमानी होती है, ठीक ऐसे ही जीवन के उत्कर्ष पर प्रतीक्षारत मृत्यु, एक क्षण पीछे चलती मृत्यु, औचक हर लेने वाली मृत्यु भयावह रूप से रहस्यमई है। साज़ से उड़े स्वर के बाद का सघन सन्नाटा है। किसी तार के टूटने के अप्रत्याशित स्वर की गहरी चुभन है।  जीवन सचमुच कितना हतप्रभ करता है, ये कहा नहीं जा सकता। काशी पर गद्य पढ़ रहा था। जीवन से मोहभंग नहीं हुआ है। न अभी से किसी दूसरी दुनिया में जाने की तैयारी शुरू की है। वैसे मैं इसे अप्रत्याशित ही रहने देना चाहता हूँ ।  मेरे एक ताईजी का जीवन पिछले महीने भर से धागे से बंधा हुआ था। अन्न जल स्वीकारने से देह ने मना कर दिया था। पाए पकड़े बैठे बच्चे आंसू भरी आंखों से उनकी मुक्ति की कामना करते रहते। मुक्ति के उपाय होते होंगे मगर विश्वसनी