दरकते दायरे

पुस्तक मेला में विनीता जी मिल गए थे। उस भेंट में उनकी दो किताबों पर साइन भी करवा लिए। विनम्र व्यक्तित्व। 

वहाँ से लौटा तो बाड़मेर में सुबह के धुएं-धकार, थड़ी की चाय-शाय, दफ़्तर की हाजरी और शाम को खेल की उछल कूद में दिन बीतते गए। रेगिस्तान में कुछ दिनों मौसम अकारण सुहाना बना रहा। लोग अचरज करने लगे कि ये कैसा मौसम है। अप्रैल मई में ठंडी हवाएं चल रही। मौसम को अपने बारे में शिकायतें पसंद नहीं आई और उसने लू से रेगिस्तान को भर दिया। 

लेकिन रेगिस्तान के लोगों को क्या फर्क पड़ता है। एक ने कहा आज गर्मी ज्यादा है। तो दूजे ने गर्दन झटक कर गर्मी को नाकाम और फालतू ठहरा दिया। तीजा कहता है, इस गर्मी में बाहर नहीं आना चाहिए था मगर एक जगह बैठे ऊब होती है। गर्मी बेचारी क्या बिगाड़ती है। पड़ती है, पड़ने दो। 

ऐसे में किताबें पढ़ना, लिखना और कुछ आराम करना भी नहीं हो पाता। मैंने कुछ नहीं पढ़ा। हालांकि कुछ नहीं कुछ नहीं कहते हुए दो छोटे उपन्यास और एक अच्छी कहानी पढ़ ली थी। मगर ये कम ही रहा। गर्मी ज़्यादा रही। 

दो दिन पहले अवकाश पर जयपुर आ गए। सामने चार किताबें दिखीं। विनीता जी का उपन्यास दरकते दायरे पढ़ना शुरू किया। 

विनीता जी का कथ्य, भाषा और कथा शिल्प का निर्वाह सुंदर है, सुघड़ है।  

उपन्यास में विनीता जी ने मनुष्य के मायावी मन और जटिल अंतर्सम्बंध को जिस तरह कहा है, वह दुर्लभ है। इस कहानी में मनुष्य और प्रत्येक प्राणी के, प्रेम आग्रही होने के प्राकृतिक भाव ने भिगोए रखा। मैं कई बार पात्रों को सोचकर, उनकी परिस्थिति के लिए द्रवित हुआ। 

मैंने जो समाज अब तक देखा है, वह अपनी प्राचीनतम परंपराओं और व्यवहार को ही आगे बढ़ा रहा है। सुडोमी से लेकर अब तक के मनुष्य के लैंगिक व्यक्तित्व के आधुनिक एब्रिवियेशन तक बिलकुल नहीं बदला है। पहले चुप्पी थी। अब कोई बात करता है, कोई लिखता है, कोई इसके हक के लिए आंदोलनरत है। 

उपन्यास का शिल्प किसी वेब सीरीज जैसा है। कहानी अनेक शहरों की पड़ताल करती है। पात्र हर तरह के पेशे से हैं। घटनाएं धोखा, स्वार्थ, षडयंत्र की तरह लग सकती है मगर मुझे उन पर प्रेम आता है। कि किसी को छू लेने, चूम लेने, अधिक देर या उम्र भर चाहते रहना कौन नहीं चाहता। स्त्री या पुरुष का दिल कोई सिंगल यूज आइटम है? कि एक बार काम आया तो दोबारा कुछ काम नहीं आएगा। 

असल में ये ही मनुष्य समाज के सच्चे पात्र हैं। अपनी ही चाहना के भय से भरे हुए। थोड़ा सा पाने को बहुत कुछ करते हुए। टूटे दिल में, दिल तोड़ने वाले की उम्मीद लिए जीते हुए। बार बार माफ करते और जाने अनजाने साथ देते हुए। हद दर्जे के दुस्साहसी। जीवन को जिस सुंदरता से जिया जा सकता है, उसी में लगे हुए। 

विनीता जी को शुक्रिया है। आपको पढ़ना सुख ठहरा। 

पढ़ने का धैर्य हो। पात्रों में डूब सकें तो ये उपन्यास आपके लिए है। किसी यात्रा, प्रतीक्षा अथवा समय काटने के लिए नहीं है।

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