मुझे तुम्हारी हंसी पसन्द है हंसी किसे पसन्द नहीं होती। तुम में हर वो बात है कि मैं पानी की तरह तुम पर गिरूं और भाप की तरह उड़ जाऊं। मगर हम एक शोरगर के बनाये आसमानी फूल हैं बारूद एक बार सुलगेगा और बुझ जाएगा। इत्ती सी बात है। --- रेगिस्तान की पगडंडियों पर बहके बहके चलते हुए औचक तेज़ भागने लगे। शहरों को चीर कर गुज़रती रेलगाड़ी में सवार होकर दूर से दूर होते गए। अजनबी रास्तों पर नई हथेली थामे, कभी बातों बातों में किसी पुरानी बात पर संजीदा होते। फिर से किसी के करीब नहीं होंगे का खुद याद दिलाते हुए अचानक मुस्कराने लगते। कि तुमसे नहीं मिले होते तो ये बातें किस से सुनते। इसलिए फिर फिर नए लोगों से मिलना। फिर से दावत पर बुलाना मोहब्बत को और सटकर चलना। ठण्डी रात में अलाव जलाकर बैठना। देखना कि आग की लपटों की रौशनी में वह कितना सुंदर दिखता है। शोरगर, तुम्हारा मन है। उसे बुझने मत देना। हर बार नए रंग का बनना और नए तरीके से बिखरना। शुक्रिया।
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]