कुर्बानियां बेकार नहीं जानी चाहिए. हमारे पुरखों ने देश को आज़ाद करवाने के लिए असंख्य कुर्बानियां दी थी. उनका ये बलिदान आज़ादी के लिए था. आज़ादी अच्छी और बड़ी कीमती चीज़ होती है. हम आज़ाद हुए तो हमें इस अच्छी चीज़ का फायदा उठाना ही चाहिए. पहले औद्योगिक घरानों ने फिर नेताओं ने और फिर नौकरशाहों ने इसका फायदा उठाया. साठ साल बीतते - बीतते ये फायदा बीडीओ से होता हुआ ग्राम सेवक तक आया. सत्तानशीं नेताओं से ग्राम सरपंचों तक आया. हर कोई आज़ादी के जश्न में डूबा हुआ आज़ादी का फायदा इस तरह उठाने लगा कि आज़ादी को निचोड़ कर सुखा दिया जाये. जैसे अफीम पोस्त का सेवन करने वाले चूरे को कूट - कूट कर छान - छान कर निचोड़ लेते हैं. बचे हुए नाकाम बुरादे को भी खाद के लिए रख लेते हैं उसी तरह देश में आज़ादी को निचोड़ा जा रहा था. मेरा भीखू महात्रे रेगिस्तान की इन गलियों में राज्य सेवा में ग्राम सेवक की नौकरी करते हुए इस निचोड़ सिस्टम की सबसे खराब कड़ी निकला. इस कारण वह खुद भी निचोड़ा जा रहा था. जिस गाँव में ग्राम सेवक था वहाँ के सरपंच ने उसे अफीम सेवन को उकसाया और इस नशे में घेर लिया. पंचायत के काम काज का हाल ऐसा हो गया कि ब...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]