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Showing posts from September, 2012

यही रोज़गार बचा है मेरे पास

आभा का घर

तुम्हारे लिए

फिर से आना जरुरी है

शगुफ्ता शगुफ्ता बहाने तेरे

नहीं जो बादा-ओ-सागर

इन्हीं दिनों

वे फूल खिले नहीं, उस रुत

आदिम प्यास से बना रेगिस्तान

तुम्हारे सिवा कोई अपना नहीं है

उनींदे की तरकश से