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Showing posts from June, 2019

नदियों का हत्यारा

दो दिन पहले मुम्बई प्यासी मरने वाली थी। दो दिन बाद पानी से भर गयी है। ये चमत्कारों का देश है। पहला चमत्कार था कि देश में अचानक सूखा पड़ गया था। इस सूखे से होने वाले विनाश के आंकड़े निकाल कर प्रस्तुत कर दिए गए थे। अगले बीस साल में चार फीसद आबादी पानी के अभाव में मरने वाली थी। मेरा भी गला सूखने लगा। मैंने पाया कि बूढा जर्जर केसी सूख कर निढाल होकर पड़ गया है। उसके शरीर से पानी की आख़िरी बून्द उड़ रही है। फटी आंखें अनंत विस्तार को देखती रह गयी है। मैंने तुरन्त तय किया कि पानी बचाने निकल पड़ो बाबू। बुढापे में इस तरह प्यास से मरना अच्छा न होगा। जाओ अपने टांके में झांको। अपनी बिसरा दी गई बावड़ियों, तालाबों और पोखरों का फेरा देकर आओ। मैं निकलता तब तक मुम्बई में बारिश आ गिरी। मुम्बई वाले बारिश पर लतीफे बनाने लगे। ये सब सुनकर मन प्रसन्न हो गया और मैंने बाहर निकलना स्थगित कर दिया। एक दिन पहले सूखे से भरे न्यूज़ चैनल्स के स्टूडियो पानी से भर गए। कल पानी के लिए युद्ध था, आज पानी से तौबा है। ऐसा कैसे हो सकता है? ये ख़बर संसार है या सिनेमाघर है। सूखा फ़िल्म उतरी और गीला फ़िल्म लग गयी।

ठहरे उदास चितराम

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आकाश में कुछ बादल आ गये थे। बरसात की आस न हुई। गर्म दिनों का लंबा सफ़र अभी और चलना था। बादलों के आने से उमस और बढ़ गई थी। अच्छा फिर भी लग रहा था। गर्मी में उमस के बढ़ जाने से तकलीफ़ बढ़ती ही है मगर जाने क्यों सब अच्छा लगने लगा। कि बादल आ गए थे। अचानक किसी ऐसे व्यक्ति की याद, जो आप तक कभी आएगा नहीं। जो आपके लिए कुछ न करेगा। लेकिन मन के ठहरे उदास चितराम में कोई हलचल होने लगती है। वह जो नहीं है, उसका न होना तय होने पर भी कुछ बदलने लगता है। कुछ लोग जो जीवन से ही नहीं वरन दुनिया से भी जा चुके होते हैं, उनका अचानक ख़याल आता है। मन बदलने लगता। हमारी परिस्थिति में क्षणभर में कोई बदलाव नहीं आता लेकिन हम महसूस करते हैं कि अब कुछ अलग लग रहा है। वे जिनके होते हुए कुछ होने की आस नहीं है, वे जो नहीं है या वे जो कभी न होंगे। वे कैसे हमारा मन बदल देते हैं। क्या ये बादल बरसेंगे? शायद नहीं, शायद कल या शायद अगले कुछ दिन बाद। फिर मन तो बदल गया। क्या हुआ? हमारे भीतर कुछ ऐसा है। जिसके अनगिनत खिड़कियां हैं। वे खिड़कियां बन्द रहती हैं। लेकिन कभी खुल जाती है। उनके खुलते ही जीवन, शरीर में बहने ल

मैसेंजर बैग

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छोटा भाई पुलिस में एडीसीपी है। जयपुर पुलिस हैडक्वाटर में उसे जो कक्ष आवंटित है, उसके बाहर उसने नेम प्लेट नहीं लगवा रखी। भाई के पास एक मैसेंजर बैग है। लेदर का है। कीमती ही होगा। उस बैग को कई बार परिचितों ने लेडीज़ बैग बता दिया है। एक बार कुछ परिचित मिलने कक्ष में पहुंचे। उन्होंने देखा कि रूम में टेबल पर लेडीज़ बैग रखा है। वे दरवाज़े से झांक कर ही चले गए। उन्होंने फ़ोन किया साहब कहाँ हो? मनोज ने जवाब दिया। "अपने कक्ष में हूँ। पधारो।" उन्होंने कहा- "साब नेमप्लेट तो आपकी लगी नहीं और जो कमरा नम्बर बताया उसमें तो टेबल पर किसी महिला अधिकारी का पर्स रखा है।" भाई के उस मैसेंजर बैग में एक आईपैड, एक फ़ोन, कुछ दवाएं, कुछ सुगंधित द्रव की शीशियां और शायद ओबामा की तरह एक हनुमान जी की मूर्ति भी रखी रहती है। इसके अलावा कुछ और भी चीजें होंगी। भाई ने मेरा बैग देखकर पूछा- "आपको मेरे वाला बैग लेडीज़ बैग दिखता है?" मैंने कहा- "दिखता तो मैसेंजर बैग ही है लेकिन इतना सारा सामान और सामान की प्रकृति के हिसाब से लेडीज़ होने की वाइब्रेशन दे सकता है।" मनोज ने पूछा- &q