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Showing posts from 2010

घर से भागी हुई दुनिया

गलियों की लड़की मैगी और रेत में मशालें

पेंसिलें

खेत में धूप चुनती हुई लड़कियां

और अब क्या ज़माना खराब आयेगा

रास्ते सलामत रहें

भूख आदमी को छत तक चढ़ा देती है

यही मौसम क्यूँ दरपेश है ?

ओ वादा शिकन...

इन आवाज़ों को शक्ल मिलने की दुआ करता हूँ

सोये हुए दिनों के कुछ पल

दिल तो रोता रहे और आँख से आंसू ना बहें

मीनारों से उतरती ऊब का मौसम

शोक का पुल और तालाब की पाल पर बैठे, विसर्जित गणेश

आओ शिनचैन लड़कियों के शिकार पर चलें

हरे रंग के आईस क्यूब्स

मुंह के बल औंधे गिरे हों और लॉटरी लग जाये

मैं तुम्हारी आँखों को नए चिड़ियाघर जैसा रंग देना चाहती हूँ

दिनेश जोशी, आपकी याद आ रही है.

हम तुम... नहीं सिर्फ तुम

अफीम सिर्फ एक पौधे के रस को नहीं कहते हैं

ब्रिटनी मर्फी और ये याद का टीला

क्रश... क्रश... क्रश.. काश, लोबान की गंध से बचा रहूँ.

धोधे खां की बकरियां और विभूति नारायण राय