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Showing posts from April, 2019

जातिवाद - कर्क रोगों में सर्वाधिक गंभीर रोग

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गिद्धों के स्वप्न में भूख से मरते प्राणी होते हैं। निम्नस्तर की राजनीति में विचारहीन धड़ों में बंटे हुए लोग होते हैं।। महान चिंतक चाणक्य ने कहा है "जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।" किसी भी धर्म और जाति में सब सज्जन हों, ये कामना करना असम्भव सा है। हर स्थान पर ओछे-टुच्चे, नीच-कमीने, लालची-धोखेबाज़ और इसी तरह कमतरी के दोषों से भरे लोग होते हैं। बाड़मेर में कुछ दिनों से निरन्तर अफवाहें बढ़ती जा रही हैं। जाट और राजपूत नाम से धमकियां ली और दी जा रही है। दिन प्रतिदिन घटित होने वाली घटनाओं को असहज जातिगत रूप देकर प्रस्तुत किया जा रहा है। बाड़मेर शहर में कुछ एक घटनाओं को लेकर आम चर्चा है। उन घटनाओं का उल्लेख करना असल में उनको हवा देना होगा इसलिए मैं उनका उल्लेख नहीं कर रहा हूँ। लेकिन कुछ रोज़ पहले एक ज़मीन के टुकड़े को लेकर हुए विवाद में एक ही जाति के दो पक्ष लहूलुहान हो गए थे। सोचिये अगर ये सब दो अलग जाति के पक्षों में हुआ ह

किन्तु एकान्त क्या है?

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एकान्त एक निर्जन अथवा सूना स्थान है? अथवा शांत या शोरगुल रहित ऐसा स्थान जहाँ कोई न हो। क्या इसके आस-पास अकेलापन, तन्हाई, निर्जनता, सूनापन जैसे अलग शब्दों को रखा जा सकता है? इस समय मेरे आस-पास कोई व्यक्ति नहीं है। जिस स्थान पर मैं हूँ उसके दायरे से बाहर ही कोई व्यक्ति है। किंतु इसे एकान्त कैसे कह सकता हूँ। ये सब कितना भरा पूरा है। मोगरा पर कमसिन कलियां हैं। वे झुक-उठकर झांक रही हैं। मोगरा के पुष्प अपनी सुगंध के मादक जाल के तंतुओं को बुनते जा रहे हैं। मधुमालती के गुच्छों से वनैली गंध आ रही है। चिड़िया के थोड़े जल्दी आ गए कुछ बच्चे हैं। गिलहरियों के दो बच्चे भी हैरत भरी खोज में लगे हैं। मुझे भाषा और शब्दों का ज्ञान कम है। मैंने कभी गम्भीरता से व्याकरण पढ़ा नहीं। मुझे केवल कहानियां और रोचक गद्य पढ़ना ही लुभाता रहा। ये याद करता हूँ तो लगता है कि एकान्त वह था जब मैं शब्दों में खोया हुआ था। मैं भूल चुका था कि बाहर के संसार में क्या हो रहा है? सम्भव है एकान्त वह है, जहां आप सबसे अलग किसी ऐसे अंत तक पहुंचें जहां केवल आप रह जाएं। इसमें अगर कोई अन्य उपस्थित है और वह एक ही है तो

अनलर्निंग

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मुश्किल कामों में से एक काम है सीखे हुए को भुलाना। सीखना हमारे भीतर इस तरह पैठ करता है कि हम उम्र ढल जाने तक भी अपने आपको बदल नहीं पाते हैं। हमसे पहले की पीढ़ी या हमारी पीढ़ी के पास सीखे को भुलाने का हुनर कम ही देखने को मिलता है। अनलर्निंग एक कठिन कार्य है। माँ को चीज़ें संभाल कर रखने की आदत है। वे ताले जो ख़राब हो चुके या लगभग गायब हो गए हैं उनकी चाबियों से लेकर सागवान की लकड़ी से बने दरवाज़े जो चौखट से उतर चुके हैं को संभाल कर रखती हैं। इस तरह अनगिनत चीजें कबाड़ की तरह जमा है। ऐसा इसलिए है कि वे उन दिनों बड़ी हुई जब चीज़ों की उपलब्धता लगभग अप्राप्य थी। आप आज की तरह बाज़ार जाकर कुछ भी खरीदकर नहीं ला सकते थे। उन दिनों सहेजी हुई चीज़ें ही हमारे अटके काम निकालती थी। घर में सुई की जगह सुई और कुदाल की जगह कुदाल सहेजी जाती थी। मैंने दादा के भंडारघर में लोहे की चद्दरों वाली छत के नीचे, दीवार में आलों और ओने कोने में अनेक ऐसी वस्तुएं देखी थी जिनका उपयोग लगभग कभी न देखा गया। बचपन में जिस किसी घर गया वहां मैंने पाया कि बाखल में, बाड़ में और घर के बाहर की तरफ भी अनेक अनुपयोगी चीज़ें ल