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Showing posts from March, 2013

मैं तुम्हारी ही हूँ

वक़्त के होठों पर एक प्रेमगीत

फिलहाल गायब हैं मेरे पंख।

कि मोहब्बत भी एक कफ़स है

कैसे लिखूँ कि याद क्यों आती है?

सब कुछ उसी के लिए

मुझे सब मालूम है

उधड़ी सिलाई से दिखती ज़िंदगी

रेगिस्तान में आधी रात के बाद

शौक़ जीने का है मुझको, मगर...

प्रेम, हथेली के बीच का फफोला

कि जी सकूँ एक मुकम्मल उम्र

तनहा खड़े पेड़ पर खिली हुई कोंपल.