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Showing posts from February, 2020

न कहने सी बात

विदा होते समय काश थोड़ी देर और थाम कर रखा होता हाथ। भारी क़दमों से लौटते हुए शैतान ने सोचा। विदा होने के बाद भीड़ में दिग्भ्रमित मन लिए ठहर गयी शैतान की प्रेमिका। प्रेम जैसी सरल बात दुनिया में सबसे कठिन बात थी। * * * शैतान डरता रहा कि उससे दिल की बात कही तो दिल टूट जाएगा। दिल तोड़ देने के सिवा कोई रास्ता न था। * * * कितनी ही आंधियां आई बारिशें गुज़रीं कितने ही सर्द मौसम दिल के रास्ते निकले मगर प्रेम के पदचिन्ह मिटते ही नहीं थे। हैरान शैतान दिल को उलट पुलट देखता और थककर एक ओर रख देता था। पदचिन्ह फिर टिमटिमाने लगते। * * * शैतान डरता था कि कहीं प्रेम न हो जाये आख़िर शैतान बने रहना ही सुखकर था। डर एक दिन हर किसी को दबोच लेता है। * * * शैतान को छत पर सोना प्रिय था। वह एक चादर बिछा कर सोया हुआ आकाश के असंख्य तारों में खोजता था एक सितारा। जो शैतान की प्रेमिका के होठों के पास बैठा रहता था। * * * जब काली, लाल, पीली आंधियां गुज़रती थी शैतान सोचता था कि सांस लेना ज़रूरी बात है। शैतान क्या जानता था कि एक दिन शैतान की प्रेमिका कानों में फुसफुसा रही ह

कालो थियु सै - इंदु सिंह

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नई पुस्तक कालो थियु सै पर कथाकार कवयित्री इंदु सिंह जी की टिप्पणी “ कालो थियुसै ” नाम का आकषर्ण जितना अधिक है उससे कहीं अधिक आकर्षित करती है इसकी भाषा और बिम्ब।किशोर चौधरी जिस तरह से अपनी ठेठ भाषा के साथ हर कथ्य में खड़े हैं वो नायाब है.छोट-छोटे सटीक वाक्य गहरी लम्बी बातों को समेटे हुए हैं। “ज़िंदगी एक भ्रम है और इसके टूटे जाने तक इसे धोखा मत देना” अमित का जीवन,उसके सरोकार,उसकी लिखावट,उसकी ख्वाहिशें और उन सबसे जूझता अमित। लेखक ने अमित को पुनः जीवित कर दिया है सभी पाठकों के बीच। अंत में आँखों से आँसू ठीक वहीं टपकता है जहाँ लेखक ने इसे महसूस किया । अमित को पढ़कर बस अमित को जाना भर जा सकता है लेकिन वो महसूसना किसी को इतनी बारीकी से,ये लेखक की खूबी है । जिस दिन अमित को पढ़ा उस दिन कुछ भी और आगे पढ़ने कि इच्छा न हुई । वो दिन सिर्फ़ अमित का था । किशोर सही ही तो कहते हैं कि हम सब एक लट्टू की ही तरह तो हैं । कोई फ़र्क नहीं । एक दिन सबको लुढ़कना है । दुशु के साथ यात्रा में लेखक न सिर्फ़ पिता है बल्कि एक मित्र भी है और साथ ही स्वयं एक बच्चा भी जो अपने पिता के साथ किये गए साइकिल के सफ़र की

ये ही वो समय है

सारे आदेश मसखरी थे सब हत्याएं हादसा थी। सड़क पर कुचले गए कुत्ते के पास एक शोकमग्न कुत्ता अंतिम बार उसे सूंघ रहा था। एक आदमी के क्षत विक्षत शव पर दूजे ने कहा हरामी की अंतड़ियां बिखर गई। यह एक स्थानीय किन्तु वैश्विक बात थी। * * * बच्चे क़ैदी थे। नौजवान सिपाही तमाशबीन थे। अधेड़ अधिकारी थे। न्याय के विलम्ब में मौन कोलाहल पसरा रहता। सुख भरी शांति केवल तब प्रस्फुटित होती, जब बच्चों के बयान से साफ़ हो जाता कि उनको जन्म देने वाली माएँ अपराधी थी। पंच तत्वों से बनी दुनिया में हवा में उड़ाया जाता, पानी की कैनल दागी जाती, नफ़रत की आग भड़काई जाती, भूमि से भार हटाया जाता और आकाश को झूठ के बांस से अधिक ऊंचा उठाया जाता। स्त्रियां यौनि थी, पुरुष लिंग थे, बच्चे अंगदानकर्ता थे। कवि मसखरे थे। मसखरे विद्वान थे। विद्वान अपराधी थे। न्याय अंधा था। राजा कौन थे? ये सब जानते थे। मगर चुप थे। कि सब घरों में बच्चे थे। सीरिया के बच्चे युद्ध लड़ रहे थे। अफ्रीका के बच्चे भूख से लड़ रहे थे। अफगानिस्तान के बच्चे रॉकेट लांचर का भार उठाये थे। बाकी बच्चे नफ़रत के अलाव से अपना दिमाग़ सेक रहे थे। पिछली सदी के नौवें दश

हालांकि हम क्या बात करते

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संदेशे छूटते जाते हैं। बात करना कल तक के लिए टल जाता है। जाने कौनसा कल। बस एक ख़याल दस्तक देता रहता है कि आवाज़ अभी तक न सुनी जा सकी। हालांकि हम क्या बात करते? इस तस्वीर को अगर तुम पढ़ सको तो यही लिखा है कि कलाकार स्टूडियो से बाहर हैं। साज़ बेतरतीब रखे हैं। साज़ के कवर घिस चुके हैं। स्टूडियो की दीवारों पर अनगिनत स्याह तारे टिमटिमाते हैं। और मैं सोच रहा हूँ कि तुमको पहली बार देखा था तो मैंने क्या किया। पखावज से निकले दीर्घ स्वर की लोप होती हुई स्मृति की तरह मैं ओझल हो रहा था। धीरे धीरे डूब रहा था। इसके बाद मुझे लगा कि तुम तक जाना चाहिए लेकिन ये न लगा कि तुमको बताना चाहिए कि मैं यहां क्यों आया हूँ। इसलिए केवल कहानियों की बातें ही ठीक थी। लेकिन क्या मैं तुम तक आया था? एक उजली लौ असंगत नाचती है। मैं चुपचाप देखता हूँ। जैसे तुमको देखा था।