फोन में लगे होने की जगह ईयरफोन का 3.5एमएम का जैक उसके मुंह में था। और नज़रें कहीं दूर क्षितिज में अटकी हुई थी। हालाँकि उसे मालूम था कि जीवन का अप्रत्याशित होना अच्छा है। *** उसे उन दोनों के सस्ते और अमौलिक ड्रामों के बारे में कुछ मालूम न था। उसे ये जानना न था कि वे दो और उनकी मण्डली मिलकर कैसा रूठने-मनाने, जीने और मर जाने का सजीव प्रसंग खेलते हैं। उन दो के बीच निष्पादित रसों का स्थायी भाव प्रेम, मित्रता या मसखरी या कुछ और था ये जानना भी उसकी रूचि न था। मगर अचानक कभी-कभी उसका जी चाहता कि अपने फोन की प्ले लिस्ट को सर्फ करे। अपने गले के पास कॉलर से लटके ईयरफोन को छुए। *** हाँ ठीक है। अच्छा। ओके। कब। ओह। ऐसा क्यों। हूँ। हाँ-हाँ। इसी तरह की बातें करते हुए उसकी अंगुलियां ईयरफोन के सफ़ेद लंबे तार से खेल रही थी। आखिर में उसने कहा- हाँ लव यू टू। फोन कटने के ज़रा देर बाद उसने देखा कि ईयरफोन के तार में अनगिनत गांठे पड़ चुकी थी। मौसम में गरमी बहुत ज्यादा थी और तन्हाई पहले जितनी लौट आई। *** एक रोज़ बच्चे ने पूछा- क्या थोड़ी देर के लिए आपका ईयरफोन मिल सकता है। उसने थोड़ी देर ...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]