बस एक ही बात थी वो भी कही नहीं गयी. * * * पीली चादर ओढ़े दो भंवरे बड़े दिनों बाद कल दिखे. उनकी उड़ान में लय थी. उनके गान में सुर था. वे हवा में थोड़ा स्थिर होते और फिर हलकी मचल के साथ नृत्य करते. मैं बालकनी में खड़ा हुआ था. उनके साथ जाल के पेड़ टंगे एक पुराने घोंसले को देखने लगता. डेजर्ट डव का घोंसला है. बिखरे-बिखरे तिनके हैं. एक टहनी पर बैठी डव, कभी भंवरों का उल्लास देखती है और कभी मुझे. अचानक एक हवा का वर्तुल आता है. डव अपनी पांखें खोलकर बड़ी हो जाती है. हवा के साथ उड़ने को तैयार. भंवरे जाल के भीतर कहीं गुम हो जाते हैं. हवा अपना फेरा देकर जाती है तो डव अपने पंख समेट लेती है. भंवरे अपनी बांसुरी लेकर लौट आते हैं. जीवन में हवा के झोंके जैसे असहज दिन-रात कई बार आते हैं. हम उनको कोसते हैं. हम उनको भूलते भी नहीं हैं. लेकिन डव और भंवरों का जोड़ा उसे भूल कर फिर से जुट जाता है, अपनी मोहोब्बत को जीने के काम में. शुक्रिया. * * * बस इतना भर याद है कि तुम्हें डर है भविष्यवाणियों से. के तब तक हम न मिले तो? * * * हर प्यार की तरह वह भी आला मूर्ख था. मर गया प्यार ही में. * ...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]