अगर हम समझ सकें तो हर शै हमसे कुछ कहती है। इस दुनिया के स्थूल कारोबार से बहुत दूर अपने सघन एकांत में कभी हम दीवारों, पत्थरों, रास्तों, पंछियों से अपने मन की कोई बात कह बैठते हैं। हमें किसी अबोले सजीव या निर्जीव से बात करते हुए कोई देख ले तो वह कह उठेगा "ये दीवानापन है। पागल हो चुका है।" मैंने लोगों को बातें करते देखा है। मुझे अजीब लगता था। मैंने ऐसे लोगों के बारे में सुना कि वे बड़बड़ाते रहते हैं। मैंने ये मान भी लिया था कि ये केवल नीम बेहोशी में फूट रहे अस्पष्ट शब्द भर है। किंतु किसी रोज़ मैंने थककर दीवार का सहारा लिया। एक बीस साल का लड़का इतना थक चुका था कि पहली बार उसे लगा दीवार ने थाम लिया है। वह साथ खड़ी है। दीवार के पास बहुत देर खड़े रहने के बाद अचानक लगा कि उसे धन्यवाद कहा जाए। मैंने बोलकर कहा- "शुक्रिया" इसके बाद मैं मुस्कुराया। किसलिए मुस्कुराया? शायद इस बात के लिए दीवार ने थैंक यू सुना है। उसे अच्छा लगा है। आज सुबह फ़रीबा की कविताएं पढ़ रहा था। उन कविताओं से पहले पांच सात कवियों को पढ़ चुका था। एक साल नब्बे में जन्मी लड़की की कविताएं थी। मैं उनसे कनेक्ट होने की कोशि...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]