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Showing posts from July, 2021

सर्द रात

एक सस्ती सराय के कमरे में रात दूसरा पहर ढल गया था। मेज़ पर मूंगफली और निचुड़े नींबू पड़े थे, वह सो चुका था।  लिफाह बेहद ठंडा था। ओलों के गिरने का शोर बढ़ता जा रहा था। शराब के नशे से भरे दिमाग पर दस्तकें बढ़ती ही गई तब वह जागा। रात का एक बजा था। दरवाज़े के भीतर आती हुई औरत का चेहरा खुला था। काँधे पर शाल तिरछी पड़ी थी जैकेट भीगा-भीगा सा था। औरत की आंखों में एक बेचैनी थी।  उसने सिगरेट के लिए दाएं बाएं देखा तब तक औरत लिहाफ के भीतर घुसकर सो गई थी।  इंतज़ार कभी-कभी हिंसक बना देता है। शराब न पीने वाली औरत के होंठों पर उसने शराब की गंध से भरा मुंह रख दिया। औरत को प्रेम था या न था मगर इतनी बेसब्र चाहना थी कि हिंसा मद्धम आंच की तरह उगने लगी।  वह उसके बदन की ज्यामिति से भली भांति परिचित था। लेकिन हिंसा उसके बदन से पहला परिचय कर रही थी। वह उसे अपने आगे लेकर एक हूकते सियार में ढल गया था।  चौपाई हिंसा से लिहाफ गिर गया। रात की सर्द अकड़ गुम हो गई। वह कुछ देर उसकी छातियों में सर रखकर पड़ा रहा। जब तब उसकी पीठ को टटोलता। औरत की टांगों पर बहुत सारे बचपन के घावों और चोटों के बचे निशान उसे लि...