Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2022

मिलेंगे किस से?

कि जहां हम खड़े हैं  यहां से वे दिन, ज़रा से उस तरफ हैं कि दो कदम पीछे चल सकें तो वहीं पहुंच जाएं। * * *  टीशर्ट की सलवट को ठीक करते हुए हमेशा दूसरे टी की याद आई। कि इस समय वह अलमारी में कहां रखा होगा।  याद एक सहारे की छड़ी बनकर बहुत दूर तक ले जाती। याद पुरानी होने में बहुत समय लगाती है। याद में सबकुछ थ्रीडी दिखता रहता है। मॉल के चमकदार फर्श में दो लोगों का अक्स। बेशर्मी से मुस्कुराते, तेज़ी से आगे बढ़ते, हथेलियों के बीच किसी बदतमीज बात को सलीके से छुपाए हुए एस्केलेटर से नीचे उतरते हुए भीड़ में गुम होते हुए। बादल अचानक बरसने लगे। सड़क पर बिखरे पानी के पेच में फिर से दोनों की परछाई एक साथ दिखी। फिर मुस्कुराएं। मगर याद में अकसर चेहरे पर ठहरी उलझन भी सामने आ खड़ी होती है। कि सारा साथ और सारा झगड़ा, ठीक करने को है या मिटा देने को है। कि ये या वो नहीं सब चाहिए। सब।  शहर इतने पसरे क्यों होते हैं कि घने बादल क्षण भर में पीछे छूट जाते हैं। दो बहुत दूर के घरों पर खाली आकाश तना रहता है। उनके बीच के आकाश पर बादल छाए रहते हैं।  कभी बारिश के मौसम में भी रात भर बरसात नहीं होती, अगले द...

अतीत कोई मर चुकी शै नहीं है

बहुत नई एक पुरानी बात  इतना सा लिखकर ड्राफ़्ट में छोड़ दिया था। तीन साल पहले का अक्टूबर महीना था। मैं सोचने लगता हूँ कि क्या बात थी?  मुस्कुराता हूँ। बीत चुकी बात केवल दो काम की ही होती है। एक मुस्कुराने की दूजी सीख लेने की।  सीखने की बात आते ही मैं मुस्कुराने लगता हूँ कि जीवन में जो काम दिल की खुशी के लिए किया हो, उनसे क्या सीखना। वे तो खुशी के लिए किए काम थे। जैसे जुआ करना, सट्टा लगाना, दोपहरें तम्बाकू के धुएं की छांव में बिता देना, शामें शराब से भर लेना और प्रेम कर बैठना।  सब ग़लत काम बहुत सही होते हैं। लू चल रही है। हर दो दिन बाद हीट स्ट्रोक गले लग जाता है। बदन हरारत से भर जाता है। तपिश मुसलसल बनी रहती है। नींद किसी अधबुझी लकड़ी सी लगी रहती है। रह रहकर नींद का झकोरा आता है। ऐसी नीम बेहोश नींद में बेवक़्त के सपने ऐसे आते हैं, जैसे तमाशा दिखाने वाला आधे तमाशे के बाद बात बदल देता है। जागना नींद से अधिक भारी होता है। ऐसे बैठा रहता हूँ जैसे कुछ सोच रहा हूँ मगर असल में केवल चुप बैठा होता हूँ। एक अधपके पेड़ से अधिक चुप या उदासीन। क़स्बे की सड़कें, चाय की थड़ी, बालकनी से दिखती गल...