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Showing posts from November, 2022

कितने ही सबब

मिलें कि मिलकर क़रार खो जाए। ये जी जो लगा हुआ है, उचट जाए तो बेहतर है। खिड़की से बे सबब गली में, छत पर बैठे हुए क्षितिज तक हमें कुछ देखना न हो मगर देखते रहें। कभी कोई सांस ऐसे आए, जैसे हम भूल गए थे खुद को, और अब फिर से खुद को याद आए।  मिलकर होगा तो वही मगर हो तो भी कितना अच्छा। कि आख़िर कितना कम-कम सोचें, कितने अधिक चुप रहें।  फिर से देखो परिंदे।