ये बरस बीत गया है। असंख्य परिवारों के लिए ये बरस कभी नहीं बीतेगा। ये सियाह छाया बनकर उनके जीते जी साथ चलता रहेगा। आज नव वर्ष की पूर्व संध्या पर उल्लास होगा, रोशनियां होगी, बधाइयां होगी हर कोई ये भूल जाएगा कि इस दुनिया में दो युद्ध चल रहे हैं। इन युद्धों में दुनिया के पांच छह लाख लोग मारे जा चुके हैं। युद्ध के बारे में हीरोडोटस ने कहा कि शांति में पुत्र पिता का अंतिम संस्कार करते हैं और युद्ध में पिता पुत्रों का। इस बरस हमने मांओं, पिताओं और चाचा मौसियों की गोद में नन्हे बच्चों को पार्थिव देह देखी। ऐसे भी बच्चे देखे कि जिनका इस दुनिया में कोई नहीं बचा। वे अस्पताल में चिकित्सकों के सामने खून से सने हुए भय से कांप रहे थे। जीवन जितना भयावह दिखा, उतनी भयावह तस्वीर कोई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कभी नहीं बना सकेगा। दुख, पीड़ा और भय से भरी तस्वीर केवल मनुष्य ही नफ़रत से रच सका है। नई दुनिया, नई तकनीक और नए भुलावों में जीने का समय है। तकनीक मनुष्यता की उतनी ही मित्र हो सकती थी, जितनी की वह शत्रु बनी बैठी है। आकाश का सैन्यीकरण हो रहा है। जबकि इस बरस भूकंपों से दुनिया कांपती रही। को...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]