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Showing posts from May, 2024

ठंडा ठंडा फूल फूल

"लोहो तेरस सौ सिंटीग्रेड माथे प्रज्वलित हुवे, हाइड्रोजन सवा पांच सौ माथे हुया करे पण आदमी रे दिमाग रो कोई भरोसो नी है। वो किणी भी बात माथे तप सके।" जैकिसन भा ने इतना कहकर स्टील की जर्दे वाली डिबिया निकाली।  भा के डिबिया निकालते ही सब दुकानदार चौंके। इत्ती गर्मी मे जर्दो ठीक नी है। पीले जर्दे में सफेद चूना मिलाने के लिए भा ने दूसरी तरफ का ढक्कन खोला तो लू का एक भभका उठा। आग ही आग का आभास होने लगा।  लोगों ने एक साथ कहा "भा"। माने इस गर्मी को और क्यों बढ़ा रहे हो। लोग सही थे। भा की डिबिया के जर्दे से निकली गर्मी आला अधिकारियों तक भी पहुंच गई। बाड़मेर के अठ्ठाईस हज़ार किलोमीटर में आग ही आग का होना खतरनाक हो गया था। अधिकारियों ने पसीना पौंछने और बटन खोलने बंद करके तुरंत अग्निशमन को फ़ोन लगाया।  अग्निशमन वालों ने कहा "हम तो आग बुझाने के ही एक्सपर्ट हैं। आप आदेश कीजिए" भा ने जर्दे को दांत और होंठ के बीच दबाया भी नहीं था कि अग्निशमन की गाड़ियों के सायरन बजने लगे। बाड़मेर के स्टेशन रोड पर लाल ट्रक की कतार आ गई।  मझ गर्मी में सड़को पर पानी बहने लगा। अठ्ठाईस हज़ार कि...

खुलासे में नहीं आएंगे

मुख़्तसर वक़्त में यह बात नहीं हो सकती दर्द  इतने  हैं  खुलासे  में  नहीं  आएंगे।  रेगिस्तान के जीवन की मान-मर्यादा, लज्जा और सुंदरता को सोशल साइट्स में कुरूप करना आरंभ कर दिया है। फटे-ओछे कपड़ों, भद्दी हरकतों, निर्लज स्त्री-पुरुष संवादों और बेहूदा लतीफों से वीडियो और रील बनाने वालों ने बेशर्मी का अफ़ीम चटा दिया है। इनके फॉलोवर्स अपने पुरखों की इज्ज़त पर कालिख पोत रहे हैं। मैंने इस सब से उकता कर अपने इंस्टा अकाउंट को डीएक्टिवेट कर दिया है। वहां कुछ मित्र साहित्य और संस्कृति की बातें शेयर करते थे मगर इसके एवज में रील्स की गंदगी को सहन करना कठिन हो गया था।  ये कैसी छवि गढ़ी जा रही है। ये कैसा आनंद है। कुरूपता के क्या सुख हैं। निर्लजता कैसा परमानंद है। सहवास के संवादों में कैसा ज्ञान है। स्त्री पुरुष के सुंदर लौकिक संबंधों में घटिया चुटकलों की कैसी संस्कृति है। ये सब बाल मन को किधर ले जा रहे हैं। ये कैसी फीडिंग है। इस पर सबसे बड़ा सवाल है कि कथित शिक्षित और समझदार लोग क्या पीकर सो गए हैं। वे अपने बच्चों के इंस्टा अकाउंट्स को क्यों नज़रंदाज़ किए हुए हैं...