कल रात को पीने के लिए वोदका का एक पैग ही बचा था। रूस की इस देसी शराब को मैं ज्यादा पसंद नहीं करता हूँ. आधी रात होते ही उतर जाया करती है फिर भांत - भांत के बेहूदा सपने देखते हुए सुबह हुआ करती है. आज विस्की के बारे में सोच रहा हूँ। चौदह सौ ग्यारह बाघ और सिर्फ ग्यारह हिंदी चिट्ठा चिन्तक ... ? कूट शब्द 1411 के तहत बाघ को समर्पित पोस्ट्स में ग्यारह प्रविष्ठियां दिख रही है। सोचता हूँ किसके बारे में चिंता की जाये ? बाघ या फिर उन के बारे में जो दिन में चार पोस्ट लिखते हैं और चेतना - चूतना की बातें किया करते हैं। जिन्होंने चिट्ठे को भी सोशियल नेटवर्किंग बना दिया है। बाघ मैं तुम्हारे लिए विस्की के दो पैग बचा कर रखते हुए, ये टुच्ची पोस्ट तुम्हें समर्पित करता हूँ. तुम दूर दूर तक घूमते हुए हर पेड़ पर अपने मूत की विशिष्ट गंध छाप लगा कर अपना इलाका चिन्हित करते रहो. घबराओ मत अपनी संख्या को लेकर विलुप्त तो डायनासोर और न जाने क्या क्या हो गए. आज अगर एक डायनासोर रात भर के लिए मेरा मेहमान हो ...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]