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Showing posts from March, 2015

तुम मेरी फेवरेट ड्रग हो।

गर्मियां अचानक आई। एक पल में बदल गया सब कुछ। रूह पर जैसे कोई आंच का लिबास उतरा। रात-दिन छोटे बड़े हिस्से चुराते हुए कभी कोई लम्बा अंतराल कुंडली मारने लगता। मन उदासी की गति में, तन शिथिलता की ओर। फिर अल्पविरामों के प्रेम में पूर्ण विराम के भय से सिहरे हुए भारी-उखड़ी सांसों के मध्य लव स्माइली और छोटी-छोटी पुकारें बिखर जाती हैं। दुनिया की गिरहों से परे, दुनिया से किसी चाहना के बिना, बस एक बार रेत की पीठ के तीखे कटाव के पास प्रेम लिख देने और फिर मिटाकर चले जाने की सोच में खोयी हुई नाकारा, बेढब, बेसलीका ज़िन्दगी। सिर्फ बेदिली और इंतज़ार जिसका हासिल है। ये कुछ एक बातें कभी किसी दोपहर या रात को छत पर लेटे तारों को देखते हुए कह दी। उस तक पहुंचे भी तो क्या वह समझ सके? कमसिन अल्हड़पन कई बार उम्र का मोहताज़ कहाँ होता है। कब सादगी समझती है पेचीदगी को। कल दिन को लू चूमती रही। आओ मेरे केसी तुम्हारी बाँहों और गरदन पर लिख दूं ताम्बई रंग। लिख दो जाना जो लिखना चाहो। एक ज़िन्दगी है जो थोड़ी सी बाकी है... जैसे शाम ठिठकी हो बुझने से पहले रात आग़ाज़ को झुकी जाती हो। तुम उधर इंतज़ार में, मैं इधर बेक़रारी मे...