ये कुछ एक बातें कभी किसी दोपहर या रात को छत पर लेटे तारों को देखते हुए कह दी। उस तक पहुंचे भी तो क्या वह समझ सके? कमसिन अल्हड़पन कई बार उम्र का मोहताज़ कहाँ होता है। कब सादगी समझती है पेचीदगी को। कल दिन को लू चूमती रही। आओ मेरे केसी तुम्हारी बाँहों और गरदन पर लिख दूं ताम्बई रंग। लिख दो जाना जो लिखना चाहो। एक ज़िन्दगी है जो थोड़ी सी बाकी है...
जैसे शाम ठिठकी हो बुझने से पहले
रात आग़ाज़ को झुकी जाती हो।
तुम उधर इंतज़ार में, मैं इधर बेक़रारी में
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गरम दोपहरों वाले मौसम के साथ एक कश्मीरन लड़की ने दस्तक दी।
रेत भर हैरत पसर गयी है।
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जिस किसी ने कहा था
तुमसे मोहब्बत थी इसलिए शादी की
अब जाने क्यों मोहोब्बत नहीं है मगर वादा कायम है।
ऐसे लोगों से अच्छे कहलाये वे लोग
जिन्होंने वादे सब तोड़े मगर कहा मोहोब्बत कायम है।
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जी चाहता है तुम्हारे पहलू में सिमट जाऊं
फिर ख़याल आता है रहने दो कि जी और भी बहुत कुछ चाहता है।
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दो दिन और रात बरसती रही रेगिस्तान की आंधी की काली पीली रेत। ऊंटों का टोला बैठा रहा बिना जुगाली गोल घेरे में। मुसाफिरों ने छोटे तुंबुओं से झाडी नहीं धूल।
प्रेमिकाएं मगर कोसती रही इंतज़ार को।
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डॉक्टर ने कहा दुरस्त है तुम्हारी आँखें
ये सिर्फ इंतज़ार की चुभन का दर्द है।
शैतान की आँखों में उतरा है रोग नया।
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तुमने मुझे क्या कुछ दिया है सोचकर मन प्रसन्न हो जाता है। इसके कुछ देर बाद मेरा लालच असंख्य तकलीफें बटोर लाता है।
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अब फिर वही सब गुज़र रहा होगा। बाद इसके वही सब गुज़रेगा।
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जो पेशानी की सीध में था सितारा
अब वह टूटा तो गिरेगा उस कान के पास
जिसमें तुम्हारे होठ सरगोशी फूंकते हैं।
शैतान ! ओ शैतान मैं प्रेमिका हूँ तुम्हारी।
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रोहिड़ा कुछ रोज़ आकाश को
फिर धरती को रंगता है अपने फूलों के रंग से।
जाना अब तुम भी टूटकर गिर पड़ो मुझपर।
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गरमी ने इस तरह दस्तक दी है
जैसे गुबरैले रेत पर भागे जातें हों कहीं घर बसाने को।
जाना क्या तुमने भी सोचा है
कि कोई दस्तक दूं, हम कहीं बस जाएँ ठंडी जगह पर।
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एक तेरा वो कहना
कि उम्र भर याद रहेगा मुझे
कैसे कैसे लोगों को बरदाश्त किया है तुम्हारी खातिर।
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अगर वह टूट पड़े तो
सीधा मेरी पेशानी पर आये।
एक तेरी याद सा तारा आसमान में चमकता है
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नींद उतरती है
कच्ची बात की तरह ठिठकी हुई।
तुम जो पास रहो तो कोई नयी शिकायत भी आये।
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झूले में एक मद्धम मचल है
तुम्हारी बाहों की तरह।
रात के आठ चालीस हुए हैं।
ज़िन्दगी किसी गुज़री हुई चीज़ का नाम नहीं है।
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तलब बेहिसाब और लम्हे ज़िन्दगी के कम-कम। एक बेवक़्त की बेख़याली में कही बात लिपटी रहती है ज़िन्दगी की शाख से। मुझे तुम्हारे तंज भी प्रिय हैं। और तेरी याद भी, जैसे सूखी बेल की धूसर सलवटों से झांकती कच्चे हरे रंग की कोंपलें।
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