दो दिन पहले मुम्बई प्यासी मरने वाली थी। दो दिन बाद पानी से भर गयी है। ये चमत्कारों का देश है। पहला चमत्कार था कि देश में अचानक सूखा पड़ गया था। इस सूखे से होने वाले विनाश के आंकड़े निकाल कर प्रस्तुत कर दिए गए थे। अगले बीस साल में चार फीसद आबादी पानी के अभाव में मरने वाली थी। मेरा भी गला सूखने लगा। मैंने पाया कि बूढा जर्जर केसी सूख कर निढाल होकर पड़ गया है। उसके शरीर से पानी की आख़िरी बून्द उड़ रही है। फटी आंखें अनंत विस्तार को देखती रह गयी है। मैंने तुरन्त तय किया कि पानी बचाने निकल पड़ो बाबू। बुढापे में इस तरह प्यास से मरना अच्छा न होगा। जाओ अपने टांके में झांको। अपनी बिसरा दी गई बावड़ियों, तालाबों और पोखरों का फेरा देकर आओ। मैं निकलता तब तक मुम्बई में बारिश आ गिरी। मुम्बई वाले बारिश पर लतीफे बनाने लगे। ये सब सुनकर मन प्रसन्न हो गया और मैंने बाहर निकलना स्थगित कर दिया। एक दिन पहले सूखे से भरे न्यूज़ चैनल्स के स्टूडियो पानी से भर गए। कल पानी के लिए युद्ध था, आज पानी से तौबा है। ऐसा कैसे हो सकता है? ये ख़बर संसार है या सिनेमाघर है। सूखा फ़िल्म उतरी और गीला फ़िल्म लग गयी। ...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]