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Showing posts from January, 2022

अपने लिखे में ढल जाना

शाम ढ़लने के समय कोई छत से पुकारता है। मैं अजाने सीढियां चढ़ने लगता हूँ। छत पर कोई नहीं होता। पुकारने वाला शायद उस ओर बढ़ जाता है, जिधर सूरज डूब रहा होता है।  पश्चिम में पहाड़ पर जादू बिखर रहा होता है। उपत्यका में रोशनियों के टिमटिमाने तक मैं डूबते हुए सूरज को देखता रहता हूँ। किसी सम्मोहन में या किसी के वशीभूत।  अचानक मन शांत होने लगता है कि क्या करूँगा वहां जाकर जहां से लौटना ही होगा। मैं कभी सिगरेट सुलगाता हूँ कभी चुप बैठे सोचता हूँ कि अब तक कितनी बर्फ गिर चुकी होगी।  एक कहानी कही थी 'एक अरसे से', कहीं मैं उस कहानी के नायक में तो नहीं ढल गया। मैं बदहवास सीढियां उतर कर उस किताब को खोजने लगता हूँ ताकि अपनी कही कहानी का अंत पढ़ सकूँ।

शायद प्रेम हाथी होता है

 हाथी एक भद्र व्यक्तित्व है। ~रुडयार्ड किपलिंग  हाथी चला जा रहा था। सुबह साढ़े नौ बजे एफसीआई के सामने था। दोपहर दो बजे स्टेशन रोड पर था। उसके पिछले कूल्हों पर फूल उकेरे हुए थे। उसके पांव कीचड़ से सने थे। उसका एक दांत बेढब था।  उसकी पीठ पर एक मामूली हौदा था। हाथी की बेबसी की शक्ल का हौदा। हौदे के गद्दी तो थी मगर उसकी पुश्त न थी। हौदे की गायब पुश्त की तरह हाथी की पुश्तें कहाँ छूट गई थी, ये जानना असंभव था।  हाथी की चाल चलने की बात याद आई। मैंने ठहर कर देखा कि हाथी कैसे चल रहा है? उसकी मद्धम लय क्या कोई स्थायी चाल है? शायद नहीं। मैंने कहीं आवेशित या आक्रोशित हाथियों को भी देखा था। इसलिए ये कहना ठीक है कि हाथी की चाल मतवाली होती है लेकिन ये कोई स्थायी बात नहीं है।  हाथी की याददाश्त के बारे में कहीं पढा था। वे बचपन की बात और रास्ते को बुढ़ापे तक नहीं भूलते। हाथी की दुर्लभ इच्छा के बारे में जाना कि वे अपने पूर्वजों की जगहों पर जाना चाहते हैं। वहां जाकर अक्सर गंभीर हो जाते हैं। वे उनके होने की स्मृति को बार-बार जी सकते हैं। यही अद्भुत है।  मैंने दस बारह बरस की उम्र मे...