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Showing posts from March, 2022

बहुत निकट का भ्रम

जिसे हम बहुत क़रीब समझते हैं  उसे तकनीक ने हम से दूर कर दिया है।  कल शाम व्हाट्स एप के स्टोरी सेक्शन में गया। पचास साठ कॉन्टेक्ट्स की स्टोरी देखी। चार-पांच दोस्तों को रिएक्ट कर दिया।  एक रिएक्ट से कितनी ही बातें सामने आ खड़ी हुई। एक का मालूम हुआ कि बीमारी ने इस तरह घेरा की मौत को महसूस कर लिया। एक उदासी की रेखा के पार हताशा से भरी हुई थी। एक मित्र की पार्टनर गहन स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या से जूझ रही है। एक ने बताया कि सब ठीक है। इसके आगे कहा "बस चल रहा है"  ये कौन लोग हैं, जिनके हाल से मैं अनजान था। ये रेडियो में वार्ता के लिए आने वाले, संगीत के कलाकार, मेलों में मिले पुस्तक प्रेमी, सफ़र में एक्सचेंज हुए फ़ोन नम्बर या ऐसी ही किसी लघुतम भेंट से परिचित।  नहीं! ये दोस्त हैं। हमने बरसों एक दूजे को जाना-समझा, महसूस किया। हम मिले, साथ बैठे, गप लगाई। वक़्त बेवक़्त मैसेज किए, लंबे फ़ोन कॉल्स किए। अपने काम और परिवार के बारे में बातें की। बच्चों की चिंता और खुशी बांटी। हर बार उलाहने दिए कि मिले हुए कितना समय हो गया है।  और फिर चुपचाप सब उजड़ गया।  अचानक हम फेसबुक पोस्ट, ...

कि सोचना खुद एक गुंजलक शै हो चुकी

और कितना लड़ना चाहिए।  बरस भर में कई बार लड़ चुका हूँ। हालांकि ये लड़ाई किसी से कही जाए तो वह कहेगा धत्त! इसे भी भला कोई लड़ाई कह सकता है।  त्वरित घटित होने वाली घटनाओं का एक दौर हुआ करता है। आह, ओह, आहा, सचमुच, यकीन कर लें, ये भी होना था, सोचा नहीं था। इस तरह सब कुछ इतना तीव्र घटता है कि आगे के सामान्य समय की चाल शिथिल और उदासीन जान पड़ती है।  एक ठहरा हुआ खाली समय।  मैं तम्बाकू के अधीन नहीं था। मेरा मन किन्ही झंझावतों से घिरा हुआ था। एक क्षण बाद लगता कि अगला काम करने से पहले सिगरेट फूंक ली जाए। मैं तन्हा खाली कमरे की ओर जाता। सिगरेट फूंकता।  चारपाई से उठने से पहले सोचता कि एक और सिगरेट का धुआं खींच लिया जाए। अब तक का धुआं कम लग रहा है। दूसरी सिगरेट जलाता। अकसर ऐसा होता कि दूसरी सिगरेट के बाद मैं चारपाई पर आधा लेट जाता। खिड़की और दरवाज़े से दिखते अरावली के पहाड़ों के टुकड़े देखता।  काम फिर भी शुरू नहीं होते। कैसे तो काम, जैसे नहा लो, कपड़े पहन लो, अपना थैला लो, पेन पेंसिल चेक करो। स्कूटर पर बैठो और दफ़्तर चले जाओ। नहाना स्थगित रहता। आगे के काम स्वतः रुके रह...