जिसे हम बहुत क़रीब समझते हैं उसे तकनीक ने हम से दूर कर दिया है। कल शाम व्हाट्स एप के स्टोरी सेक्शन में गया। पचास साठ कॉन्टेक्ट्स की स्टोरी देखी। चार-पांच दोस्तों को रिएक्ट कर दिया। एक रिएक्ट से कितनी ही बातें सामने आ खड़ी हुई। एक का मालूम हुआ कि बीमारी ने इस तरह घेरा की मौत को महसूस कर लिया। एक उदासी की रेखा के पार हताशा से भरी हुई थी। एक मित्र की पार्टनर गहन स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या से जूझ रही है। एक ने बताया कि सब ठीक है। इसके आगे कहा "बस चल रहा है" ये कौन लोग हैं, जिनके हाल से मैं अनजान था। ये रेडियो में वार्ता के लिए आने वाले, संगीत के कलाकार, मेलों में मिले पुस्तक प्रेमी, सफ़र में एक्सचेंज हुए फ़ोन नम्बर या ऐसी ही किसी लघुतम भेंट से परिचित। नहीं! ये दोस्त हैं। हमने बरसों एक दूजे को जाना-समझा, महसूस किया। हम मिले, साथ बैठे, गप लगाई। वक़्त बेवक़्त मैसेज किए, लंबे फ़ोन कॉल्स किए। अपने काम और परिवार के बारे में बातें की। बच्चों की चिंता और खुशी बांटी। हर बार उलाहने दिए कि मिले हुए कितना समय हो गया है। और फिर चुपचाप सब उजड़ गया। अचानक हम फेसबुक पोस्ट, ...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]