जिसे हम बहुत क़रीब समझते हैं
उसे तकनीक ने हम से दूर कर दिया है।
कल शाम व्हाट्स एप के स्टोरी सेक्शन में गया। पचास साठ कॉन्टेक्ट्स की स्टोरी देखी। चार-पांच दोस्तों को रिएक्ट कर दिया।
एक रिएक्ट से कितनी ही बातें सामने आ खड़ी हुई। एक का मालूम हुआ कि बीमारी ने इस तरह घेरा की मौत को महसूस कर लिया। एक उदासी की रेखा के पार हताशा से भरी हुई थी। एक मित्र की पार्टनर गहन स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या से जूझ रही है। एक ने बताया कि सब ठीक है। इसके आगे कहा "बस चल रहा है"
ये कौन लोग हैं, जिनके हाल से मैं अनजान था। ये रेडियो में वार्ता के लिए आने वाले, संगीत के कलाकार, मेलों में मिले पुस्तक प्रेमी, सफ़र में एक्सचेंज हुए फ़ोन नम्बर या ऐसी ही किसी लघुतम भेंट से परिचित।
नहीं! ये दोस्त हैं। हमने बरसों एक दूजे को जाना-समझा, महसूस किया। हम मिले, साथ बैठे, गप लगाई। वक़्त बेवक़्त मैसेज किए, लंबे फ़ोन कॉल्स किए। अपने काम और परिवार के बारे में बातें की। बच्चों की चिंता और खुशी बांटी। हर बार उलाहने दिए कि मिले हुए कितना समय हो गया है।
और फिर चुपचाप सब उजड़ गया।
अचानक हम फेसबुक पोस्ट, व्हाट्स एप स्टोरी और इंस्टा की रील्स में कहीं खो गए। हमारे वे दिन, वे बातें, वे मेल्स, वे ब्लॉग और लिखने पढ़ने की तक़रीरें गायब हो गई। हम एक-दूजे के सुख-दुख से अनजान हो गए।
कल स्टेटस देखने से मालूम हुआ कि विश्व गौरैया दिवस है। आज सुबह घर के आंगन में चिड़कलियों का उधम चल रहा था। ये हर सुबह शाम होता है।
हमने कुछ मिट्टी से बने चिड़ियाघर लगाए थे। उनमें केवल दो में चिड़िया रहती हैं। बाकी खाली लटके रहते हैं। यानी चिड़ियों को वहां सुरक्षा का अभाव लगा। वे अपने लिए सही जगह चुनना जानती हैं।
आंगन में बेरी का पेड़ है। मित्रों-परिवारजनों ने कई बार कहा, इसे कटवा दीजिये। बेरी शुभ नहीं होती।
बेरी पर बेहिसाब बेर आते हैं। वे सब कच्चे ही रहते। उनको गिलहरियां कुतरती रहती हैं। चिड़ियाँ घोंसला बनाने को तिनके लाती हैं। वे बिखरते रहते। बेरी के नीचे हर रोज़ कचरा होता। वह पूरे आंगन में उड़ता रहता।
एक रोज़ शिकरा आ गया था। वह छोटी चिड़ियाँ और कबूतर का शिकार करता है। वह बेरी के भीतर नहीं जा पाता। वह बहुत देर बेरी के बाहर बैठा रहा। चिड़ियाँ बेरी की भीतरी शाखाओं पर चुप बैठी रही। शिकरा उड़ गया। चिड़ियाँ फिर से फुदकने और चहचहाने लग गई।
बेरी से कांटे झड़ते हैं मगर वह किसी के लिये सुरक्षा की जगह है। इसलिए नहीं काटी जा रही। ऐसा सौंदर्यबोध भी किस काम का जो उपयोगिता को समाप्त कर दे।
बेरी के पास एक जामुन और एक आम खड़ा है। वे दोनों सीधे सरल हैं। उन पर फल आएंगे। लेकिन क्या सिर्फ जो दे उसी के लिए दुनिया में जगह बचेगी। बाकी सब को हटा दिया जाएगा?
दोस्तो से बात करते रहो। तकनीक ने इनको चुप्पा और अकेला कर दिया है।
मैंने इसे गंभीरता से महसूस किया है। सोशल साइट्स अति हैं। वे निरन्तर विषाक्त करती हैं। इसलिए मैंने सोशल साइट्स से खुद को समेट लिया है। फेसबुक का प्रोफ़ाइल बन्द कर दिया। व्हाट्स एप और इंस्टा को फ़ोन से हटा दिया। ताकि मैं दोस्तो और परिवार से बात कर सकूं। कॉल किए जा सकें। वह कहने-सुनने की जगह बन सके, जो हम प्रिय के साथ ही बांटना चाहते हैं।
किसी को अचानक कॉल करना असहज हो सकता है मगर किसी एप पर देखने और आगे बढ़ते जाने की जगह कॉल करना अच्छी बात है।