सेवाप्रसाद सहज यौन इच्छाओं से भरा सरल व्यक्ति है। वह अभी तक कुंठित नहीं हुआ है। समाज के सबसे निचले पायदान के कार्य स्वच्छता का कार्मिक है। उसके लिए सुखी परिवार की सीमा उन परिवारों तक समाप्त हो जाती है, जहां वह कचरा उठाता है। उसकी पत्नी फूल बेचती है। फूल बांटने वालों के हाथों में खुशबू बची रह जाती है, उक्ति की तरह हर रात पत्नी महकती हुई मिलती है। वह उसकी प्रतीक्षा करता है। इस प्रतीक्षा में खुशबू भरी स्त्री के अतिरिक्त अनेक स्त्रियों की तस्वीरें हैं। उनकी देह और खुशबू के बारे में कल्पनाएं पंख लगाए उसके आसपास उड़ती रहती है। उन नाज़ुक पंखों की छुअन से वह अक्सर उत्तेजित महसूस करता है। सेवाप्रसाद की इन कल्पनाओं से उपजी हरकतों पर पत्नी कायदा भी बिठा देती है। कचरा जिस तरह सेवाप्रसाद को ऊब और उकताहट से भरता है, उसके उलट जिनके यहां कचरा बीनता है, उन लोगों के जीवन का सुख उसे इच्छाओं से भर देता है। वह उस जीवन में सेंध लगाना चाहता है। भीतर प्रवेश करके सुख को चिन्हित कर लेना चाहता है। डिकोड करने की ये चाहना फलीभूत होती है। वह एक घर के खुले दरवाज़े के भीतर प्रवेश कर जाता है। वहां प्रथम दृष्टि एक...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]