सेवाप्रसाद सहज यौन इच्छाओं से भरा सरल व्यक्ति है। वह अभी तक कुंठित नहीं हुआ है। समाज के सबसे निचले पायदान के कार्य स्वच्छता का कार्मिक है। उसके लिए सुखी परिवार की सीमा उन परिवारों तक समाप्त हो जाती है, जहां वह कचरा उठाता है।
उसकी पत्नी फूल बेचती है। फूल बांटने वालों के हाथों में खुशबू बची रह जाती है, उक्ति की तरह हर रात पत्नी महकती हुई मिलती है। वह उसकी प्रतीक्षा करता है। इस प्रतीक्षा में खुशबू भरी स्त्री के अतिरिक्त अनेक स्त्रियों की तस्वीरें हैं। उनकी देह और खुशबू के बारे में कल्पनाएं पंख लगाए उसके आसपास उड़ती रहती है। उन नाज़ुक पंखों की छुअन से वह अक्सर उत्तेजित महसूस करता है। सेवाप्रसाद की इन कल्पनाओं से उपजी हरकतों पर पत्नी कायदा भी बिठा देती है।
कचरा जिस तरह सेवाप्रसाद को ऊब और उकताहट से भरता है, उसके उलट जिनके यहां कचरा बीनता है, उन लोगों के जीवन का सुख उसे इच्छाओं से भर देता है। वह उस जीवन में सेंध लगाना चाहता है। भीतर प्रवेश करके सुख को चिन्हित कर लेना चाहता है।
डिकोड करने की ये चाहना फलीभूत होती है। वह एक घर के खुले दरवाज़े के भीतर प्रवेश कर जाता है। वहां प्रथम दृष्टि एक सुघड़ स्त्री की टांगों पर ठहरती है। स्त्री सोई हुई है। उसकी टांगें उन तस्वीरों से मेल खाती है। ये सेंध उसे अचानक एक आफत में डाल देती है।
वह परिवार आत्महत्या कर चुका होता है। निम्न मध्यम या मध्यम वर्ग का परिवार जिसमें पति पत्नी और दो बच्चे हैं। सब असमय दुनिया से विदा ले चुके होते हैं। कर्ज़ से न उबर पाने के कारण, वे ऐसा कदम उठाते हैं।
कहानी पूंजीवाद के बारे में है। हमारी इस व्यवस्था के बारे में है। ऐसी आर्थिक प्रणाली जिसमें धनिक वर्ग उत्पादन साधनों पर अधिकार कर श्रमिकों का शोषण करता है। पूंजी की व्यवस्था का सरल उद्देश्य है, अमीर और गरीब के बीच की खाई को बढ़ाते जाना। सब सुखी हो जाएंगे तो सेवाप्रसाद जो काम करता है, वह कौन करेगा। वह भी केवल इतने दाम में कि उसे दो समय का खाना मिल जाए।
इस कहानी में पूंजीवाद निम्न और मध्यम वर्ग को भौतिक आकांक्षाओं के जुए में जोत कर मिटा रहा है। वह जो हैप्पीनेस की खुशबू है, असल में उधार के कुचक्र की गंध है। इस खुशबू के नीचे छुपे एक कष्टप्रद और बोझिल जीवन का अंत होना निश्चित है। ऐसा निरंतर हो रहा है। हम प्रतिदिन समाचार पत्रों में सामूहिक आत्महत्या और कारण के रूप में कर्ज़ को पढ़ते हैं। हमें ऐसा समाचार नहीं मिलता, जिसमें कर्ज़ देने वाले लोग, कंपनियां या संस्थाएं दोषी पाई गई हों और उनको दंडित किया गया हो।
कहानी पाखी में प्रकाशित हुई है। जहां मैं रहता हूं रेगिस्तान के इस कस्बे तक अब साहित्यिक पत्रिकाएं आना बंद हो गई है। इसलिए कभी कभार किसी मित्र से कहानी की तस्वीरें या पीडीएफ मिल जाता है तो पढ़ पाता हूं। ये कहानी कल मिली थी।
इतनी आवश्यक कहानी कहने के लिए अणुशक्ति सिंह जी को धन्यवाद पहुंचे।
Painting - Couched, 2020 Jenna Gribbon