मेरे सब दोस्तों में बाबू लाल एक मात्र सच्चा शराबी था उसने ब्रांड , स्थान और शराबियों में किसी भी प्रकार का भेदभाव किए बिना मयकशी को सुन्दरता प्रदान की। उसका दिल प्यार से भरा था और वह एक पैग से ही छलकने लग जाए इतना हल्का भी नहीं था। मैं हमेशा अपनी शाम उसके साथ ही बिताना चाहता था किंतु सच्चा शराबी एक ही बंधन से बंधा होता है शराब के ... उसके लिए बाक़ी सब चीजें होती ही नहीं और होती है तो कहीं रेत के टिब्बों में किसी हरी झाड़ी के समान विरली। पीने और ना पीने वाले तमाम शायरों के शेर में मुझे उसी का हुस्न जगमगाता दिखाई पड़ता था। हम बीस साल पुराने पियक्कडों में वह सबसे अधिक लोकप्रिय था। मेरे सिवा पूरी टीम के समक्ष संविधान की अनिवार्य शर्तें लागू थी वे कभी बच्चे का जन्म दिन , कभी रीलिविंग पार्टी , कभी कभी किसी राष्ट्रीय आपदा पर गंभीर चर्चा के बहाने अपनी बीवियों को पटाते और फ़िर पीने आते थे। उनके लिए वो दिन अत्यधिक उत्साह से भरा ह...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]