टिंग टिंग टिंग ट्विंग सेलफोन में कोई वाद्य बजता रहता है. स्क्रीन एक बार नीला होने के बाद चमकने लगता है. अंगुलियाँ फोन नहीं उठाती. आँखें टेबल पर पड़े फोन को देखती रहती है. दोपहर की गहरी नींद ढली हुई शाम में खुलती है. रात आये ब्रश करते हुए. कई दिनों की बाकी शेव पर रेजर फिराते. कस्तूरी की गंध का आफ्टर शेव हथेली में लिए आईने में देखना. शोवर के नीचे खड़े हुए पानी की बूंदों को पीठ पर गिरते हुए महसूस करना. कुछ महीनों की गर्द से भरे काले जूतों को झाड़ कर सफ़ेद जुराबें खोजना. साल दो हज़ार ग्यारह की ख़ुशबू से भरी एक चेक वाली कमीज एनयू 87 और खाकी ट्राउजर. ड्रेसअप होकर कहाँ जाओगे? ड्रिंक लेने? बालकनी में खड़े यही सवाल दिल में आया था. कल रात उस वक़्त दस बजकर बारह मिनट हुए थे. * * * ज़िन्दगी एक कहानी है. ये बहुत जगह स्किप होती रहती है. जीए हुए पलों की तस्वीर से बहुत से सीन गायब रहते हैं. याद के नन्हे गुरिल्ला सिपाही हमला करके छुप जाते हैं. अचानक चौंक कर बहुत पीछे किसी तनहा लम्हे में दूर तक फैली रेत पर बैठे हुए ख़ुद को याद आता हूँ. वह लगभग पूरे आसमान को देखने की एक रात थी. ...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]