अक्सर

दोपहर का स्वप्न 
साँझ की आहट से टूट जाता है. 

किसी फूल के कान में 
स्वप्न टांकते हुए सांझ ढल जाती है. 

रात का पहला पहर 
अभी बीत रहा होता है 
घने अंधरे में अचानक लगता है 
कि उस फूल की आँखें 
ठीक सामने चमक रही है. 

एक चौंक उतरती है. 

हाथ बढाकर देख लूँ कि वह है? 
मगर जो हाथ बढ़ा नहीं 
उसमें एक लरज़िश है.

कभी-कभी नींद के स्वप्न 
और जाग के स्वप्न के बीच के 
फासले पर धुंध उतर आती है.

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