कोई बात परेशां करती थी. बेवक्त याद आती. फिर मैं देर तक उसी में उलझा रहता था. इससे बाहर आने को ब्लोगर का ड्राफ्ट खोलता और लिखने लगता. कच्चे ड्राफ्ट जमा होते गए. जैसे किसी किशोर के मन में सम्मोहन जमा होते जाते हैं. वह नहीं जानता कि उन सबका क्या करेगा? मुझे भी नहीं मालूम था. दोस्तों ने कहा इन कहानियों की किताब बना लो. तीन साल लगातार तीन किताबें आ गयीं.
एक रोज़ लगा किसलिए?
अपने बचे पड़े ड्राफ्ट्स को नहीं देखा. कम-कम पढता था, ज्यादा-ज्यादा सोचता था. फ़ितरतन फिर नए ड्राफ्ट जमा होते गए. दुखों को दूर रखने का कोई रास्ता नहीं था. इसलिए उनको लिखकर अपने पास बिठाता गया.
सबसे बड़ी तकलीफ होती है, बेमन हो जाना. तीन महीनों से लैपटॉप खोलता हूँ. जमा किये ड्राफ्ट की फ़ाइल तक जाता हूँ. फ़ाइल खुली पड़ी रहती लेकिन मैं किसी कहानी में नहीं जा पाता. ये एक उबाऊ सिलसिला बन गया. निराश होने लगता फिर हताशा आने लगती.
मेरी कहानियां कहाँ गयी? मैं सोचता कि इस तरह मेरा मन कैसे सूख सकता है? क्यों पपड़ियाँ बनकर सोचने की ज़मीन टूटने लगती है? मैं बहुत परेशान रहा. फिर सोचा कि मैंने कहानी संग्रह पूरा कर लेना सोचकर ख़ुद पर कोई दबाव बना लिया है. इसलिए कुछ काम नहीं होता. जबकि ऐसा कभी न था. मैंने कई बार तीस-चालीस दिन लगातार रोज़ दस घंटे तक लिखा है.
आज अचानक क्या हुआ?
सुबह का जागा हुआ सोचता रहा कि क्या कुछ लिख सकूंगा? लेकिन सोचना एक अलग बात होती है. दोपहर अलसाया पड़ा रहा. शाम होने से ठीक पहले मेरी आँखें चमक से भर गयी. मैं मुस्कुराने लगा. सबसे पास मानू मिली तो उसे कहा- "एक कहानी सुनो."
कई बार हम कुछ नहीं कर सकते. लोग बहुत बातें करते हैं कि हर परिस्थिति से लड़ना चाहिए. हिम्मत नहीं हारनी चाहिए. अथक प्रयत्न करने चाहिए. लेकिन मैं जानता हूँ कि जब आप कहीं चारों तरफ से घिर जाते हैं. तब आपके सब यत्न लगातार आपको निराश करते हैं. आपकी उर्जा चुकती जाती है. एक पल आता है जब आप गिव अप के मोड में आ जाते हैं. और ये कोई बुरी बात नहीं.
सुबह तक लगता था कि मेरे और कहानी के बीच सब खत्म हो चुका है. लेकिन ऐसा नहीं था.