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Showing posts from August, 2017

सराह एप - ओट से चलते बाण

असल में ऐप के पीछे छुपा हुआ शुभचिंतक आपकी हर तरह से हत्या का इरादा रखता है। आप समझ नहीं रहे। मेरे पिता के ज़माने के लोग कहा करते थे कि अपनों को मुंह पर डांटते रहिये, पीठ के पीछे उनकी प्रसंशा कीजिये। एक ऐंटी सोशल एप ने बुजुर्गों की ये बात याद दिला दी है। अब चुपके से बिना नाम बताए ढेर तारीफें फेंकी जा रही हैं। लेकिन मेरा एक डर अभी बाकी है। ये अदृश्य लोग कितने ख़तरनाक हैं। ये आपकी अच्छाइयों को आपके सामने स्वीकारते नहीं हैं। ये लोग आपके सामने प्यार और इज्ज़त से देखते नहीं लेकिन पसमंज़र में आपके लिए दिल उछाले जा रहे हैं। आपको अपना क्रश बता रहे हैं। आपको डेट पर चलने के न्योते दे रहे हैं। किसी भी व्यक्तित्व को सम्मान और प्रेम चाहिए होता है। वह आपके मुख से अपने बारे में दो मीठी बातें सुनकर ख़ुश भी रहना चाहता है। हम ऐसा नहीं करते हैं। एप पर आये संदेशे अगर आपने ख़ुद ख़ुदको नहीं भेजे हैं तो सावधान रहिये। मैंने एप का उपयोग नहीं किया। अगर किया होता और कोई मुझे गुप्त तरीके से कहता कि आप अच्छी कहानियां लिखते हैं। तो ये हौसला अफ़ज़ाई क्या सचमुच होती? ऐसा क्यों है कि आप किसी को अच्छा कहने ...

जेएनयू परिसर की एक दोपहर

उदासी का कोई कवर नहीं होता। मगर वह धुंधली होकर मिट जाती है।

इस रुत

तुरई के पीले फूलों पर भँवरे मंडराते रहे बेरी में घोंसला बनाती रही नन्ही काली चिड़िया बेशरम की बेल चढ़ गई नीम की चोटी तक मन, ख़रगोश घर के बैकयार्ड में खोया रहा। इस रुत कहीं जाने का मन न हुआ।

और कोई प्रेम नहीं तुमको

सघन दुःख की भाषा में ठीक से केवल हिचकियाँ लगीं होती हैं. दुःख जब घना होता है तब हम जिस भाषा में प्रखर होते हैं, उसी भाषा में अल्प विराम ( , ) अर्द्ध विराम ( ; ) पूर्ण विराम ( । ) विस्मयादिबोधक चिह्न ( ! ) प्रश्नवाचक चिह्न ( ? ) योजक चिह्न ( - ) अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न ( '' '' ) लोप चिह्न (...) लगाना भूल जाते हैं. ठीक वाक्य विन्यास और बात सरलता से समझ आये, ये तो कठिन ही होता है.  * * * दुःख के सामने घुटने मत टेको. दुःख को उबालो और खा-पी जाओ.  आलू, अंडे और कॉफ़ी की एक पौराणिक कथा है. एक बेटी ने पिता से कहा- "पापा मेरे सामने असंख्य समस्याएं हैं. मैं दुखी हो गयी हूँ." पिता उसे रसोई में ले गए. तीन मर्तबानों में पानी डाला और उनको आंच पर रख दिया. एक मर्तबान में आलू डाला, दूजे में अंडा और तीसरे में कॉफ़ी. कुछ देर आंच पर रखने के बाद पिता ने कहा- "देखो, इन तीन चीज़ों के सामने एक सी विषम परिस्थिति थी. इस आंच को सहने के बाद, आलू जो कि सख्त था. वह नरम हो गया है. अंडा जो कि एक कच्चे खोल में तरल था, वह सख्त हो गया है. और कॉफ़ी ने तो पूरे पानी को ही, अ...