सघन दुःख की भाषा में ठीक से केवल हिचकियाँ लगीं होती हैं.
दुःख जब घना होता है तब हम जिस भाषा में प्रखर होते हैं, उसी भाषा में अल्प विराम ( , ) अर्द्ध विराम ( ; ) पूर्ण विराम ( । ) विस्मयादिबोधक चिह्न ( ! ) प्रश्नवाचक चिह्न ( ? ) योजक चिह्न ( - ) अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न ( '' '' ) लोप चिह्न (...) लगाना भूल जाते हैं.
ठीक वाक्य विन्यास और बात सरलता से समझ आये, ये तो कठिन ही होता है.
ठीक वाक्य विन्यास और बात सरलता से समझ आये, ये तो कठिन ही होता है.
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दुःख के सामने घुटने मत टेको. दुःख को उबालो और खा-पी जाओ.
आलू, अंडे और कॉफ़ी की एक पौराणिक कथा है. एक बेटी ने पिता से कहा- "पापा मेरे सामने असंख्य समस्याएं हैं. मैं दुखी हो गयी हूँ." पिता उसे रसोई में ले गए. तीन मर्तबानों में पानी डाला और उनको आंच पर रख दिया. एक मर्तबान में आलू डाला, दूजे में अंडा और तीसरे में कॉफ़ी. कुछ देर आंच पर रखने के बाद पिता ने कहा- "देखो, इन तीन चीज़ों के सामने एक सी विषम परिस्थिति थी. इस आंच को सहने के बाद, आलू जो कि सख्त था. वह नरम हो गया है. अंडा जो कि एक कच्चे खोल में तरल था, वह सख्त हो गया है. और कॉफ़ी ने तो पूरे पानी को ही, अपने जैसा कर लिया है."बेटी ने अपना सर हिलाया और कहा- "हाँ" पिता ने कहा- "मुश्किलें कैसी भी हों. हम उनका सामना करके क्या बनते हैं? ये महत्वपूर्ण है. हमें कॉफ़ी की तरह दुखों को ख़ुद में घोल लेना चाहिए.उन पर हावी हो जाना चाहिए"
मैं होता तो बेटी से कहता- "तुम क्या पहले खाना पसंद करोगी? आलू या अंडा?"
इसलिए कि ज्यादा फर्जी ज्ञान अच्छा नहीं होता. ज्ञान के नाम पर किसी को बरगलाने से अच्छा है कि तुमको जो अच्छा लगे वह पहले खा लो मगर ध्यान रखो कि कॉफ़ी ठंडी न हो जाये. वर्ना दोबारा गर्म करनी पड़ेगी.
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महाभारत में धर्म और न्याय के नाम पर जितनी मनुष्यता की क्षति हुई, उसमें तेरहवें दिन की क्षति सबसे भारी थी. हरेक युद्ध मनुष्यता की राह का रोड़ा है. लेकिन चक्रव्यूह के भीतर भी नियम तोड़ दिए जाएँ तो ये अति की पराकाष्ठा है. अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश किया लेकिन राजा जयद्र्थ ने पांड्वो को अंदर आने से रोक दिया था. चक्रव्यूह में अभिमन्यु ने असंख्य योद्धाओ को मार गिराया. इनमें वृह्द्व्ला, कोसल और करथा के राजा, भोजराज , शल्य पुत्र रुक्मरथ शामिल थे. इनके अलावा उसने दुर्योधन के पुत्र को भी मार दिया. दुर्योधन ने क्रोधित होकर दुशाशन के पुत्र दुर्माशन को अभिमन्यु को मारने भेजा किन्तु वो स्वयं मारा गया.
इस पर क्रोधित दुर्योधन ने अपने सभी योद्धाओ को एक साथ आक्रमण करने को कहा. अभिमन्यु अपना रथ, घोड़ा,तलवार और कवच तक खो चुका था. उस पर कई बाणों के साथ वार किया गया लेकिन अभिमन्यु अकेला, उन महारथियों पर रथ का पहिया लेकर टूट पड़ा. अपनी अंतिम सांस तक लड़कर, अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो गया.
इसी तरह हिंदी का पाठक हर असाहित्यिक युद्ध के चौथे, पांचवें या तेरहवें दिन मारा जाता है. गुरु-शिष्य, प्रवचनकर्ता-श्रोता या गडरिये-भेड़ के खोल से कांव-कांव करते पक्षी बाहर आते हैं. अपमानित स्त्री के पक्ष में अपमान करने वाले की स्त्री को नोचना चाहते हैं. बेटी को इस कीच में घसीटना चाहते हैं.
साहित्य की इस कुमति बेल ने अकूत वंश वृद्धि कर ली है. अब हर कोई किसी न किसी की ज़ुबान से गिर पड़ता है.
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प्रगतिशील. जनवादी, लोक कल्याणकारी, स्त्रीवादी होने में, देखना-सोचना-समझना भूल गए हो. प्रिये तुम अपने सारे वाद एक बार उतार कर नीचे रख दो. ये बोझ हो गए हैं. तुम कहना कुछ चाहते हो और तुम्हारे मुंह से निकल कुछ और रहा है. तुम जिसके विरोध में हो, उसी के पाले में खड़े हो. नीचे देखो. लाइन कहाँ हैं?
और कोई प्रेम नहीं तुमको.
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अपनी समस्त खामियों के लिए क्षमा याचना करते हुए.