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हथकढ़
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]
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August 12, 2017
इस रुत
तुरई के पीले फूलों पर
भँवरे मंडराते रहे
बेरी में घोंसला बनाती रही नन्ही काली चिड़िया
बेशरम की बेल चढ़ गई नीम की चोटी तक
मन, ख़रगोश घर के बैकयार्ड में खोया रहा।
इस रुत कहीं जाने का मन न हुआ।
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