विदा होते समय काश थोड़ी देर और थाम कर रखा होता हाथ। भारी क़दमों से लौटते हुए शैतान ने सोचा। विदा होने के बाद भीड़ में दिग्भ्रमित मन लिए ठहर गयी शैतान की प्रेमिका। प्रेम जैसी सरल बात दुनिया में सबसे कठिन बात थी। * * * शैतान डरता रहा कि उससे दिल की बात कही तो दिल टूट जाएगा। दिल तोड़ देने के सिवा कोई रास्ता न था। * * * कितनी ही आंधियां आई बारिशें गुज़रीं कितने ही सर्द मौसम दिल के रास्ते निकले मगर प्रेम के पदचिन्ह मिटते ही नहीं थे। हैरान शैतान दिल को उलट पुलट देखता और थककर एक ओर रख देता था। पदचिन्ह फिर टिमटिमाने लगते। * * * शैतान डरता था कि कहीं प्रेम न हो जाये आख़िर शैतान बने रहना ही सुखकर था। डर एक दिन हर किसी को दबोच लेता है। * * * शैतान को छत पर सोना प्रिय था। वह एक चादर बिछा कर सोया हुआ आकाश के असंख्य तारों में खोजता था एक सितारा। जो शैतान की प्रेमिका के होठों के पास बैठा रहता था। * * * जब काली, लाल, पीली आंधियां गुज़रती थी शैतान सोचता था कि सांस लेना ज़रूरी बात है। शैतान क्या जानता था कि एक दिन शैतान की प्रेमिका कानों में फुसफुसा रही ह...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]