विदा होते समय
काश थोड़ी देर और
थाम कर रखा होता हाथ।
भारी क़दमों से लौटते हुए शैतान ने सोचा।
विदा होने के बाद
भीड़ में दिग्भ्रमित मन लिए ठहर गयी
शैतान की प्रेमिका।
प्रेम जैसी सरल बात
दुनिया में सबसे कठिन बात थी।
* * *
शैतान डरता रहा कि
उससे दिल की बात कही तो
दिल टूट जाएगा।
दिल तोड़ देने के सिवा कोई रास्ता न था।
* * *
कितनी ही
आंधियां आई
बारिशें गुज़रीं
कितने ही सर्द मौसम
दिल के रास्ते निकले
मगर प्रेम के पदचिन्ह मिटते ही नहीं थे।
हैरान शैतान
दिल को उलट पुलट देखता
और थककर एक ओर रख देता था।
पदचिन्ह फिर टिमटिमाने लगते।
* * *
शैतान डरता था
कि कहीं प्रेम न हो जाये
आख़िर शैतान बने रहना ही सुखकर था।
डर एक दिन हर किसी को दबोच लेता है।
* * *
शैतान को छत पर सोना प्रिय था।
वह एक चादर बिछा कर सोया हुआ
आकाश के असंख्य तारों में खोजता था
एक सितारा।
जो शैतान की प्रेमिका के होठों के पास बैठा रहता था।
* * *
जब काली, लाल, पीली आंधियां गुज़रती थी
शैतान सोचता था कि सांस लेना ज़रूरी बात है।
शैतान क्या जानता था
कि एक दिन शैतान की प्रेमिका
कानों में फुसफुसा रही होगी मैं केवल तुम्हारी हूँ।
सांस आना न आना, एक मामूली बात हो जाएगी।
* * *
एक और बात है
मगर वह बताने लायक नहीं।
शैतान ने पहली बार सोचा
कि कुछ निषेध भी होता है।
* * *
मेरा व्यवहार इन दिनों असामान्य है। मैं दिन को उनींदा और रातों को जागता रहता हूँ। कल्पना के घोड़ों को उपेक्षा से देखता हूँ। सूने रास्ते देख उदास नहीं होता। किसी के बतलाने पर झल्ला जाता हूँ। मैं चलता हूँ मगर कहीं नहीं जाता। मैं ठहरा रहता हूँ मगर वहां होता नहीं हूँ।
इस सब का कोई हल नहीं है। कुछ अजेय दूरियां होती हैं। ख़ुद से ख़ुद की दूरी।
हालांकि इस बात से डर जाता हूँ कि प्रेम में दिल टूट जाता है लेकिन इसी बात पर मुस्कुराता हूँ कि प्रेम में टूटा हुआ आदमी अक्सर विनम्र हो जाता है। अगर वह सचमुच प्रेम करता था तो...
काश थोड़ी देर और
थाम कर रखा होता हाथ।
भारी क़दमों से लौटते हुए शैतान ने सोचा।
विदा होने के बाद
भीड़ में दिग्भ्रमित मन लिए ठहर गयी
शैतान की प्रेमिका।
प्रेम जैसी सरल बात
दुनिया में सबसे कठिन बात थी।
* * *
शैतान डरता रहा कि
उससे दिल की बात कही तो
दिल टूट जाएगा।
दिल तोड़ देने के सिवा कोई रास्ता न था।
* * *
कितनी ही
आंधियां आई
बारिशें गुज़रीं
कितने ही सर्द मौसम
दिल के रास्ते निकले
मगर प्रेम के पदचिन्ह मिटते ही नहीं थे।
हैरान शैतान
दिल को उलट पुलट देखता
और थककर एक ओर रख देता था।
पदचिन्ह फिर टिमटिमाने लगते।
* * *
शैतान डरता था
कि कहीं प्रेम न हो जाये
आख़िर शैतान बने रहना ही सुखकर था।
डर एक दिन हर किसी को दबोच लेता है।
* * *
शैतान को छत पर सोना प्रिय था।
वह एक चादर बिछा कर सोया हुआ
आकाश के असंख्य तारों में खोजता था
एक सितारा।
जो शैतान की प्रेमिका के होठों के पास बैठा रहता था।
* * *
जब काली, लाल, पीली आंधियां गुज़रती थी
शैतान सोचता था कि सांस लेना ज़रूरी बात है।
शैतान क्या जानता था
कि एक दिन शैतान की प्रेमिका
कानों में फुसफुसा रही होगी मैं केवल तुम्हारी हूँ।
सांस आना न आना, एक मामूली बात हो जाएगी।
* * *
एक और बात है
मगर वह बताने लायक नहीं।
शैतान ने पहली बार सोचा
कि कुछ निषेध भी होता है।
* * *
मेरा व्यवहार इन दिनों असामान्य है। मैं दिन को उनींदा और रातों को जागता रहता हूँ। कल्पना के घोड़ों को उपेक्षा से देखता हूँ। सूने रास्ते देख उदास नहीं होता। किसी के बतलाने पर झल्ला जाता हूँ। मैं चलता हूँ मगर कहीं नहीं जाता। मैं ठहरा रहता हूँ मगर वहां होता नहीं हूँ।
इस सब का कोई हल नहीं है। कुछ अजेय दूरियां होती हैं। ख़ुद से ख़ुद की दूरी।
हालांकि इस बात से डर जाता हूँ कि प्रेम में दिल टूट जाता है लेकिन इसी बात पर मुस्कुराता हूँ कि प्रेम में टूटा हुआ आदमी अक्सर विनम्र हो जाता है। अगर वह सचमुच प्रेम करता था तो...