मन एक तमाशा है
जो अपने प्रिय जादूगर का इंतज़ार करता है।
शाम से बालकनी में बैठे हुए सुनाई पड़ता है। तुम कितने कोमल हो सकते हो? खुद से पूछने पर कोई हैरत नहीं होती। न मुड़कर देखना होता है कि किसने पूछा।
मगर सवाल छुअन होता है। कभी स्मृति में ले जाता है।
मन के सम्बंध के छीजने की आहट को सुनकर बस अपनी नज़र भर उठाकर वीराने को देखते हो। तुम चुप बैठे रहते हो। क्या कुछ टूट जाएगा, ये नहीं सोचते। बस एक ही बात रह रहकर जंगली घास की तरह आस-पास हिलती हुई महसूस होती है। ये सब क्या हुआ?
तुम जानते हो कि हवा उस ओर बह रही है जबकि तुमको दूर से हिलता हुआ हाथ ऐसे दिखाई देता है, जैसे वह इधर आ रहा है।
तुम हल्की स्याह शाम में मुस्कुराते हो मगर छीजत उस मुस्कान पर उतर आती है। तुम मुंह फेरकर दूजी ओर देखते हो। जबकि तुमको देखने वाला कोई नहीं होता। वह जो दूर से हिलता हुआ हाथ है, असल में वह जा चुका और स्मृति उसके होने का भ्रम है।
डायरी का पहला पन्ना छूने से पहले सोचने लगते हो कि वह जो जीया, उस से अधिक खराब कैसे जीया जा सकता था।
अचानक ठहरी हुई शाम तुम्हारी हंसी से भर जाती है। तुम अपने आपको माफ कर देते हो। छीजत फिर से आने लगती है मगर दिल कड़ा करके खुद से कहते हो। सबको भुला दो।
शुक्रिया।