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बची हुई तस्वीर

एक चिड़िया मनी प्लांट की पत्तियों के बीच झुक कर कुछ खोज रही थी. मुझे उसकी जिज्ञासा में रुचि नहीं हुई. मैं मोगरा की लता की शुष्क दिख रही शाख पर उग आए रेतीले रंग को देखता रहा.

मौसम में आर्द्रता थी. आकाश में कुछ बादल थे. मेरे मस्तिष्क में टुकड़ों में की गई यात्रा में उचक जाने की स्मृतियां थी. कि अभी ही बस ने औचक ब्रेक लगाया, अभी ही रेलगाड़ी धक्क से रुकी.

मैं सम्भल कर लौटा और पाया कि मोगरे पर कोई कोंपल नहीं है. कुछ पत्ते पीले हैं. जैसे थककर रंग कहीं और चला गया है. मैं समझता हूँ कि कभी-कभी न चाहते हुए भी जाना पड़ता है. 

जाने कितने बरस हुए हैं. हम मित्र हैं. किसी एक मौसम में वह फूलों से लदी मुझसे मिलती है. उसी मौसम में धूप की तल्खी हमारी प्रतीक्षा कर रही होती है. फूलों की सुवास में बंद आँखें उस क्षण को जीना जानती है. बस यही सुख है बाकी सब बिछोह. 

नौजवानी में कुछ बचाने के जतन में अक्सर उलझ जाता रहा. जितना उलझा उतना खोया. वे सब कष्ट निरर्थक नहीं रहे कि अब चाहता हूँ सब सुलझा रहे. कि आने वले कल हम नए पत्तों से मिल रहे होंगे. प्रेम की सुवास वही रहेगी, जो बीते बरस मोगरा की थी. 

कुछ देर खड़े रहने के बाद. मैंने मोगरा की शाख पर हाथ फेरा. फिर मैंने मनी प्लांट में कुछ खोजने वाली चिड़िया की ओर देखा. मनी प्लांट चुप था. चिड़िया जा चुकी थी. 

ऐसे ही एक तस्वीर बची रह जाती है. तुम जा चुके होते हो. फूलों के खिलने का मौसम गर्म रुत के साथ आ रहा होता है. रेत पर हवा लहरें उकेरने के बारे मे सोच रही होती है. 

मैं खिड़की से आती मालती के फूलों की सुगंध से भरा सो जाता हूँ. उनींदे या नींद में स्वप्न देखता हुआ सुबह की प्रतीक्षा कर रहा होता हूँ. कि नई सुबह में रेत पर नंगे पांव चलते हुए यहीं आकर ठहर जाऊँ. जहाँ ये लता सुन्दर फूल लिए खड़ी है, कुछ मेरी प्रतीक्षा में उसकी हथेली से गिर गए हैं.

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