मृत्यु के बारे में बात करना मना है।
ये अशुभ है। अशुभ कहना बात को टालना है। मृत्यु के बारे में संवाद असहज करते हैं। मानसिक विचलन लाते हैं। हम बात कर सकते हैं किंतु कठिनाई ये है कि इसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता। इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं है, इसके सब अनुमान गलत हैं।
जिस तरह दिन के उलट रात अधिक सम्मोहक, जादुई, भयावह, गोपनीय और रूमानी होती है, ठीक ऐसे ही जीवन के उत्कर्ष पर प्रतीक्षारत मृत्यु, एक क्षण पीछे चलती मृत्यु, औचक हर लेने वाली मृत्यु भयावह रूप से रहस्यमई है। साज़ से उड़े स्वर के बाद का सघन सन्नाटा है। किसी तार के टूटने के अप्रत्याशित स्वर की गहरी चुभन है।
जीवन सचमुच कितना हतप्रभ करता है, ये कहा नहीं जा सकता। काशी पर गद्य पढ़ रहा था। जीवन से मोहभंग नहीं हुआ है। न अभी से किसी दूसरी दुनिया में जाने की तैयारी शुरू की है। वैसे मैं इसे अप्रत्याशित ही रहने देना चाहता हूँ ।
मेरे एक ताईजी का जीवन पिछले महीने भर से धागे से बंधा हुआ था। अन्न जल स्वीकारने से देह ने मना कर दिया था। पाए पकड़े बैठे बच्चे आंसू भरी आंखों से उनकी मुक्ति की कामना करते रहते। मुक्ति के उपाय होते होंगे मगर विश्वसनीयता की तराजू में आते ही टोटके लगने लगते हैं। लेकिन अचानक धागा टूट ही जाता है। उसके अगले दिन से काशी वाली पुस्तक छूट गई। जबकि उसे पढ़े जाने का ये सही समय था।
गांव आने जाने के सिलसिले में अचानक एक नई पुस्तक मेरे सिरहाने रखी थी। मैंने सोचा था कि इसे किसी सप्ताहांत में पढूंगा। लेकिन ये मेरे पास चली आई। ये इकहत्तर पन्नों का नोवेला है। नाम है "मैलडीज़ ऑफ अ व्हेल"
फिर वही मृत्यु!
स्वप्न से आरंभ होता कथानक जिजीविषा को इस तरह प्रकट करता है कि अपने तमाम डरावने स्वप्नों का सांद्रीकृत आसव गले में आ गया हो। जीवन को बचाए रखने की जुगत में फिसलता हुआ जीवन। एक अनदेखी मृत्यु से साक्षात्कार करने से बचने के अथक प्रयास। इस लोक को न छोड़ने की मर्मभेदी कोशिश।
यहां से जो कथा आरंभ होती है, वह जीवन के उस पहलू को उकेरने लगती है, जिस पर बात करना मना है। कथानक एक वास्तविक संसार में आपको बनाए रखता है। कथानक और कहन ऐसा विश्वास दिलाते हैं कि ये कहानी नहीं है। ये जीवन ही है।
मैंने थोड़ी देर पहले इसे पढ़ा है। इसके प्रवाह में अतिशयोक्ति नहीं है। इसमें मृत्यु के बाद अनजाने लोक में प्रवेश करने की काल्पनिक ब्यौरे नहीं है। लेकिन इस कहानी में किसी की अनुपस्थिति से क्या बदल जाता है, वह सबकुछ है। जीवन जितना कड़ा है, उसी रूप में हैं। हमारे भीतर समझ से बनने वाली मजबूती में जितने सुराख छूट जाते हैं, वे भी हैं।
मेरे लिए नितांत अपरिचित इस लेखक के पास लिखने का बहुत सुंदर हुनर है। कथा और दर्शन, कथा और वास्तविकता की बारीक रेखा की गहरी समझ है। शाम्भवी को बहुत सारा धन्यवाद इस बात के साथ पहुंचे कि वे और लिखें।