उस मंडप में रह रह कर मंच से बजती थी तालियाँ और सामने कुछ सौ लोगों की भीड़ कौतुहल भरे हृदय में दबाए बैठी थी अनेक आशंकाएं. उन्होंने कहा कि हकीम खां एक महान कलाकार है लेकिन आखिर कमायचा हो ही जायेगा लुप्त इसलिए हम सब कमायचों को इक्कठा कर के सजा देना चाहते हैं संग्रहालय में, आने वाली पीढ़ी के लिए. मोरचंग बनाने के सिद्धहस्त लुहार आजकल व्यस्त हो गए हैं लोहे की कंटीली बाड़ बनाने के काम में इसलिए मणिहारे माला राम गवारिये के पास बचे हुए पीतल के इन छोटे वाद्य यंत्रों को भी घोषित किया जाता है राष्ट्रीय संपत्ति. उन्होंने गर्वीली आवाज़ में कहा कि ताम्रपत्र सरीखा है ताम्बे से बना मोरचंग. रंग बिरंगी झालरों की चौंध में उन्होंने तीन हाथ लंबे खोखली लकड़ी से बने वाद्य नड़ के बारे में बताया कि यूरोप के पहाड़ी गाँवों के चरवाहों के अलावा दुनिया में सिर्फ तीन ही बचे हैं इसलिए ये अनमोल धरोहर हैं. उन्होंने धोधे खां को ओढाई शाल और श्री फल के साथ एक हज़ार रुपये से सम्मानित किया. बायीं तरफ रखवा लिया हरे रंग का झोला, संरक्षित कर लिए दो जोड़ी अलगोजा. आंसू भरी आँखों से कलाकार ने बताया कि सिंध से लायी जाळ कि जड़ से...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]