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डिस्क्लेमर : कहना गलत गलत


"उनसे जो कहने गए थे फैज़ जान सदक़ा किये
अनकही ही रह गयी वो बात सब बातों के बाद"

ब्लॉग लिखता हूँ. इसलिए नहीं कि लेखक हूँ इसलिए कि कुछ शब्द मन की कोमल दीवारों से टकराते हुए आवारा फिरते हैं, उनको सलीके से रख देना चाहता हूँ. कवि नहीं हूँ मगर कुछ बातें साफ कहते हुए मन को असुविधा है. इसलिए उनको बेवजह बातें कहता हुआ, आड़ा तिरछा लिखता हूँ. वे बातें कविता सी जान पड़ती है. उदास नज़्मों और कहानियों की बातें अच्छी लगती है मगर ऐसा भी नहीं कि ख़ुशी को देखे हुए बरस बीते हों.

सुंदर और हुनरमंद लोग अच्छे लगते हैं. मेरे बहुत सारे क्रश हैं. उनके पास होना चाहता हूँ मगर कोई ऐतिहासिक प्रेम करने में असमर्थ हूँ. अब तक जो अच्छा लगा, उससे कह दिया है कि आपसे बहुत प्रेम है. इस शिष्ट समाज के भद्र शब्दों से मुझे परिभाषित नहीं किया जा सकता है. इसके लिए अनेक शब्द हैं जो मुझे बयान करने के लिए कई बार जरुरी हो सकते हैं जैसे लम्पट, नालायक, बे-शऊर आदि...

हथकढ़ मेरी डायरी है. यह पब्लिक डोमेन में इसलिए खुलती है कि लोग जान सकें कि रेगिस्तान में एक आदमी अपनी तमाम खामियों के साथ खुश होकर जी रहा है. इस डायरी को लिखने की एक और वजह है कि स्मृतियों की जुगाली करने में आसानी होती है. इस ब्लॉग को पढ़ते हुए कभी ऐसा लगे कि बातें बड़ी सच्ची है, प्रेम बड़ा गहरा है, जान कहीं अटकी है और ये मेरे लिए लिखा हुआ है. उस वक़्त खुद को याद दिलाना कि ये सब एक धोखा है.

यह सब जान कर भी प्यार आये तो करते जाना.

* * *

ओ दुखों जाओ भाड़ में कि टीकाकरण का वक़्त हुआ "पल्स पोलियो : दो बूँद ज़िन्दगी की". मूड को ख़राब न करो, नुसरत साहब को सुनो, मेरे लिए ही गा रहे हैं... लव यू बाबा.

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टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउ

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्यों की थी।  उनकी कथाओं के

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

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