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उदासी, बहुत सारी बेसबब उदासी...
कौन पुकारेगा और किसको पुकारेगा... कोई नहीं पुकारेगा, किसी को नहीं पुकारेगा, फिर भी दया करो मुझ पर..
कोई कविता कोई कहानी नहीं सूझती
बस तेरी आहट की लरज़िश मेरी छत पर उतर रही है.
ईंटों के घर की कच्ची छत पर
बिछे हुए इस सन्नाटे में यादों का चूरा उड़ता दिखता है.
इस चूरे में एक उजला उजला दिन निकला है
दिन की तपती पीठ पे इक सायकिल फिसली जाती है
सायकिल पर रखे बस्ते में इक गीला दरिया बैठा है
इस दरिया में यादों की रंगीन मछलियाँ
गोते दर गोता खाती कोई लाकेट ढूंढ रही है,
जो तूने आँखों से चूमा था...
इस मंज़र से घबरा कर दिल और भी डूबा, साँस गई
आखिर उकता कर मैंने
विस्की जिन जो भी रखी थी, सब पी डाली है
फिर भी बाहर सन्नाटा है, फिर भी भीतर सब खाली खाली है.
कोई कविता
कोई कहानी नहीं सूझती, बस तेरी आहट की लरज़िश...