कई बार हमें लगता है कि किसी एक चीज़ के कारण हमारे सब काम रुके पड़े हैं. कई बार उस चीज़ के न होने से मालूम होता है कि ऐसा नहीं था. क्या इसी तरह हमें ये समझना सोचना नहीं चाहिए कि जो कारण हमें सामने दिख रहे हैं वे इकलौते कारण नहीं है.
इसलिए सोचिये, योजना बनाइये और धैर्य पूर्वक काम करते जाइए.
ये कुछ रोज़ की डायरी है. तारीख़ें मुझे याद दिलाएगी कि ये दिन कैसे बीते थे.
आवाज़ का दरिया सूख जाता है
उड़ जाती है छुअन की ज़मीन।
मगर शैतान नहीं मरता,
और न बुझती है शैतान की प्रेमिका की शक्ल।
June 9 at 12:09am ·
शैतान के घर में होता है
शैतान की प्रेमिका का कमरा।
जहाँ कहीं ऐसा नहीं होता वहां असल में प्रेम ही नहीं होता।
* * *
सुबह से आसमान में बादल हैं।
बिना बरसे ही बादलों की छाँव भर से लगता है कि ज़मीं भीगी-भीगी है।
किसी का होना भर कितना अच्छा होता है।
* * *
June 10 at 1:03pm ·
अतीत एक साया
इसलिए भी नहीं होना चाहिए
कि जितना आपने खुद को खर्च किया है,
वह कभी साये की तरह अचानक गुम हो जाये।
* * *
ओ प्रिये
एक दिन सब ठिकाने लग जाते हैं,
हमारे दिन भी लगेंगे.
तब तक तुम जब भी ज़िन्दगी पियो
ज़रा सा इशारा मुझे भी कर दिया करो.
* * *
June 11 at 3:38pm ·
सुबह छितराई हुई बूँदें बरस रही थी। मौसम सुहान था। अभी उमस है।
कि कुछ भी स्थायी नहीं।
फिर वो ख़ुशी का उल्लास किस बात के लिए था, दुःख के आंसू क्यों थे।
* * *
June 11 at 3:50pm
उसकी नींद बाकी थी या वह प्रतीक्षा की ऊब में नींद से भरने लगी थी। उसने पैरों को कुर्सी की सीट पर रखा हुआ था। उसका सर दीवार का सहारा लिए था। उसके पीछे की दीवार पर सफ़ेद और हरे रंग की अनेक पट्टियों वाला चार्ट लगा था। सर्जरी के कई मास्टरों के नामों की कतार नीचे ज़मी तक गयी हुई थी। उसकी नींद में शायद स्टील के चमकते हुए किसी औज़ार दस्तक दी या घर में खेलते हुए अपने बच्चे के गिर पड़ने के ख़याल से चौंक से भर उठी।
उसने अपना सर फिर से दीवार से टिका लिया। गुलाबी चप्पलें कुर्सी की सीट के नीचे अविचल पड़ी रहीं।
* * *
June 11 at 11:18pm
बालकनी को थपकियाँ देती ठंडी हवा
और दूर टिमटिमाता जयपुर शहर।
सुनो जाना, ये याद है कि कोई अमरबेल है ।
June 11 at 11:18pm
बालकनी को थपकियाँ देती ठंडी हवा
और दूर टिमटिमाता जयपुर शहर।
सुनो जाना, ये याद है कि कोई अमरबेल है ।