टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है। 

टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं। 

इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है। 

पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था।

ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट भाव से अनेक रचनाएं हैं। लेकिन यीशु पर इत्र छिड़कने के लिए इत्रदान को फोड़ देने की घटना पर रचित संगीत रचना अतिलोकप्रिय रही है। मरियम ने वह सब नासमझी में किया या समझ कर, इस पर बात नहीं हुई किंतु परालौकिक संकेतों के बारे में हुई है। कि यीशु कहते हैं। ये मेरी विदा पूर्व की तैयारी का संकेत है। 

लेखकों का एक अलग संसार है। जहां वे उलझे हुए रहते हैं। वे नया रचते हैं और मेरे जैसा पाठक अतीत में छलांग लगा देता है। 

जैसे एक तेरे नाम के साथ कितने नाम याद आए।

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